Friday, May 23, 2014

चालाकी

रिश्तों में अवैध शब्द
एक बेतुका प्रयोग है
वैध या अवैध मनुष्यता के
पैमाने है
अपनी सुविधा के लिए
गढ़े गए सामाजिक प्रतिमान
कोई रिश्ता तब तक
अवैध नही हो सकता
जब तक उसमे छल न हो
और तब तक वैध नही
जब तक उसमे प्रेम न हो
रिश्ता तब तक रिश्ता नही होता
जब तक उसमे विश्वास न हो
विश्वास दुनिया का सबसे
हसीन छल है
जैसे प्रेम दुनिया में ईश्वर से भी बड़ा
विवादास्पद विषय है
ठीक वैसे ही स्त्री का विश्लेषण
सबसे बेतुका प्रयास है
जिन्दगी ऐसे ही वाहियात और
बेतुके प्रपंचो से अटी पड़ी
एक सूखी नदी है
जिस पर हम फख्र कर सके
वह बस हमारी चालाकी है
जिसे मनुष्य ने सांस लेने से
पहले सीखा था
रिश्तों को चालाकी बचाती है
और चालाकी को रिश्तें
दुनिया चल रही है यथावत
यह ईश्वर की चालाकी है
और मनुष्य को वैध-अवैध के
संकट में फंसाकर रखना
उसका एक युक्तियुक्त प्रपंच
हम नैतिकता के बोझ में झुकते है
ईश्वर उसे सजदा समझ खुश हो लेता है
इस दौर की इबादत का एक
चालाकी भरा सच यह भी है।

© डॉ. अजीत

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