Sunday, August 10, 2014

सात कतरनें वाया फेसबुक

सात कतरनें वाया फेसबुक

(एक)
तुमने सच को कल्पना के यहाँ
गिरवी रख मुझसे कुछ सपने उधार लिए थे
उसके बाद से
मै कर्जमंद हो गया हूँ
और तुम  साहूकार
कभी मिलने आओं
तो लेते आना किसी एक सपना उधार
मेरे लिए
ताकि मै भी कुछ दिन
जी सकूं बेफिक्र
तुम्हारी तरह।
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(दो)
तुम रात भर सोती हो बेफिक्र
मै तुम्हे देखता हूँ रातभर
दिन भर जो मेरी आवारगर्दी,बेफिक्री और बेख्याली हैं
वो उसी की जमानत पर मिली है
तुम्हें इसकी खबर
मै कभी लगने नही दूंगा
वरना तुम्हें मेरी फ़िक्र होने लगेगी।

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(तीन)
कल रात चाँद मेरे कान में
फूंक मारी मै जाग गया
उसने बडी उदासी से कहा
कुछ दिन धरती पर रहने का जी है उसका
इसलिए तुम अपना चाँद
उधार दे दों मुझे
तब से चाँद से बोलचाल बंद है
तुम्हें पता भी है।

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(चार)

मेरे आंसूओं ने कल शिकायत करते हुए कहा
हमें आँखों से बाहर का रास्ता नही दिख रहा है
हम अंधे हो गए है
आँखों का तालाब सड़ गया है
हमें बहने के लिए रास्ता दों
मै जोर से बिन बात के ही
हंस पड़ा
और देर तक हंसता रहा
यही एक ईलाज़ था मेरे पास।
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(पांच)
एक सुबह तुम चाय बनाने गई
फिर लौट कर नही आई
मै इतंजार करता रहा
आज भी करता हूँ
सबके हाथ में प्याली है चाय की
और तुम्हें तलाशता हूँ कप के बाहर
तुम्हारा स्पर्श आज भी बासी नही हुआ है
तुम सबके लिए चाय बनाती हो
मेरे लिए नही
ऐसी भी भला क्या दुश्मनी।

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(छह)
तुम्हें शिकायत है मै कम बोलता हूँ
मिलनसार नही हूँ
मुझे शिकायत तुम हर बात सुनना चाहती
समझने के बाद भी
चलो एक काम करते है
शिकायतों की शादी करवा देते है आपस में
फिर हम दोनों बुजुर्ग हो जाएंगे
और एक दूसरे के पूरक भी।

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(सात)

सुनो !
कल तुमनें मुझे देखकर अनदेखा किया
मुझे अच्छा नही लगा
मगर मै ऐसा नही करूंगा
क्योंकि तुम्हें विश्वास नही होगा
तुम्हारे अंदर यह विश्वास बचाकर रखना
मेरी जिम्मेदारी है।

© अजीत

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