Sunday, August 10, 2014

अफवाह

सुनों !
निर्वासन पर तुम्हारी याद
साथ लेकर जा रहा हूँ
मुठ्ठी भर तकरीरे भी है
एक पुडिया नसीहत की है
चंद सवाल चंद खतूत है
सर्दियों की धूप में
भूपेन दा को गुनगुनाते
जो स्वेटर तुमने बुना था
वो सलाइयों समेत रख लिया है
स्वेटर में खुशबू है तुम्हारें मोंगरे की
जब मन होगा
सलाइयों से तुम्हारा नाम
गीली मिट्टी पर लिखा करूंगा
इस निर्वासन में मुमकिन है
तुम्हें खत न लिख सकूं
न भेज सकूं वादों के मनीआर्डर
तुम्हारे शिकवें चाँद पर
पढ़ा करूंगा
तुम्हारे अक्स डूबते सूरज में देखा करूंगा
कुछ रास्तों की धूल वापस तुम तक
लौट जाने की जिद करेगी
रात और दिन लम्बें हो जाएंगे
इस अज्ञातवास पर
कुछ तुम्हारे सामान
बिन इजाजत के रख लिए है जिसमें
तुम्हारा कॉटन का दुपट्टा भी इसमें शामिल है
जो तपते चेहरे की मार्फत मन को छाँव देगा
तुम्हारे पास मेरी खताओं का शाल है
जब मुझे भूलना चाहों
उसे ओढ़ लेना
राहत मिलेगी सर्द यादों से
मुमकिन है हमें अब एक दुसरे के खबर न मिलें
मगर
दोनों के पास के पास
कुछ सामान जरुर ऐसा मिलेगा
जिससे हमारे करीबी होने की
अफवाह फ़ैल सकती है जमाने में
इस निर्वासन पर
पहचाने जाने से बड़ी
फ़िक्र इसी बात की है
हो सके तो सम्भाल लेना खुद को।

© अजीत





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