Sunday, August 17, 2014

फिलहाल

सुनों !
इश्क में हमेशा संजीदा रहा नही जाता
थोड़ी शरारत ताल्लुक की आँख में
काजल लगाती है
मुहब्बत वो मदरसा है
जहां की तालीम उम्र भर
काम आती है
निगाहों में पलती कुछ अधूरी अंगडाईयां
लबो पर सिसकते कुछ दफन अल्फाज़
तेरी खामोशी के सजायाफ्त कैदी है
वक्त की चादर पर तेरी ख्वाबो की तुरपाई
हकीकत से आगे की कसीदाकारी है
तेरे हाथ के उन दोनो क्रोशियों की
गवाही ली जाएगी
जो चुपचाप गुनगुनाए इश्क के नगमों के
सच्चे गवाह है
कान की बालियों को भी जवाब तलब किया जाएगा
जब बैचेन करवटों का हिसाब लिखा जाएगा
चाँद और चरागों की शक्ल देख
उनके सफर और हवा की गुस्ताखी को
तामील किया जाएगा
अपनी धडकनों में भटकतें
तीसरे सुर पर तुम्हें रागिनी छेड़नी होगी
तभी ये रिश्ता सरगम सा बजेगा
ये तय है वो मुकम्मल दिन
जरुर आएगा
बस तब तक दुआ करों मेरा हौसला
और तुम्हारा सब्र कायम रहें
तुम्हारी उदासी पर इससे बड़ी दिलासा
फ़िलहाल
मेरे पास नही है।

© अजीत 

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