Saturday, August 23, 2014

हद

खुद को इस तरह से सजा देता हूँ
लिखता हूँ लिखकर मिटा देता हूँ

बुलंदी से तकलीफ तुम्हें होती है
समन्दर में घर अपना बना लेता हूँ

तेरी महफिल तेरा साकी तेरी अना
यही बहुत है जाम अपना उठा लेता हूँ

सियासी रसूखों के किस्से हमें न बता
ऐसे ताल्लुक मै फूंक से उड़ा देता हूँ

बड़ी तेजी से करीब तुम आ गए हो
चलो तुम्हें तुम्हारी हद बता देता हूँ

© अजीत

2 comments: