Tuesday, August 26, 2014

दोस्त

लाइक कमेन्ट शेयर
ये तीन अधखुले दरवाजे थे
जहां से तुम्हारी दुनिया शुरू होती थी
और शायद बंद भी
लिखे हुए के बीच बहुत सा
बिना लिखा हुआ भी था
जिसे हद दर्जे का दुस्साहस भी
स्टेट्स न बना पाया
म्यूचुअल दोस्त दरअसल
म्यूट थे उनका होना संख्याबल से अधिक
कुछ न था
टाइमलाइन उत्तरी अक्षांश पर
बहती शुष्क नदी थी
जिसमें जीवन सदैव संदिग्ध और गुह्य रहा था
तुम्हारे साथ कुछ रिश्ते
इस तरह से टैग हुए कि
उन्हें अनटैग करने की कमांड
विकसित न हो सकी
उनका ऐसे बेतरतीब टंगे रहना
इसलिए भी ज्यादती भरा था
क्योंकि
तुम्हारी कोई दिलचस्पी अपडेट रहने में नही थी
तुम दुनिया से उकता कर
यहाँ आई थी
मगर यहाँ भी वक्त के मारें, खुद से भागते
रिक्त लोगो की पूरी जमात थी
तुम्हारा इनबॉक्स इस बात का
सच्चा गवाह हो सकता है कि
प्यार की अभिलाषा में
दोस्ती ही हथियार बनती है
तुम्हारे द्वारा पोस्ट की गई हर स्माइली का
एक दार्शनिक अर्थ था
जिसको समझने के अकाउंट
डिएक्टिवेट करना पड़ता था
लाइक,कमेन्ट,शेयर,टैग और फॉलो
की भीड़ में तुम्हें तलाशने के लिए
यथार्थ का चश्मा लगा विदूषक
बनना एक अनिवार्य शर्त थी
तब शायद तुम्हारी हंसी फूटती
जो जम गई थी ग्लेशियर सी
यहाँ फेसबुक को अवसाद की ईएमआई
पर एक्सेस करने की सुविधा  थी
यह बात तुम्हें भी ज्ञात न होगी
कुछ प्रोफाइल और पेज़ के
इस अज्ञात दर्शन में तुम्हारा मिलना
किसी तिलिस्म से कम न था
तुम्हारी दुनिया की पड़ताल करते हुए
पाताल से ब्रह्मांड तक की यात्रा की जा सकती थी
बदलती प्रोफाइल तस्वीरों
और नूतन स्टेट्स के मध्य
तुम्हारी एक समानांतर दुनिया थी
जहां तुम कभी खुद पर हंसती थी
कभी फेसबुकिया मित्रों पर
तुम्हें समझना आसान था
मगर जटिलता के आकर्षण ने
तुम्हारे विश्लेषण में लगा दिया
अब तुम्हें न समझा जाता है
और न जीया ही जाता है
ठीक इस फेसबुक की तरह।

© अजीत



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