Sunday, August 31, 2014

गजल

मिलते ही कई शर्त लगा देता हूँ
यूं खुद को भूलने की दवा देता हूँ

डाकिया भी खत तेरे कैसे लाता
हमेशा गलत घर का पता देता हूँ

मौत किस्तों में दर पर दस्तक दे
दवा में थोड़ा जहर मिला देता हूँ

इतनी ही नेकी कमा पाया बस
रोतें दिलों को थोड़ा हंसा देता हूँ

यकीन करें न करें उसकी मरजी
पी कर दिल की बातें बता देता हूँ

चाहे रिश्तें हो या फिर आमदनी
हासिल करके सब गवां देता हूँ

गुस्ताखियाँ बर्दाश्त यूं भी करते है
फख्र करने की एक वजह देता हूँ

© अजीत

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