Monday, September 1, 2014

गजल

मुस्कान पर रोज गजल होती है
बेरुखी पर आँख सजल होती है

कुछ गलतियाँ  भी हुई हमसें
माफी की रोज पहल होती है

चाहतों का सूद बढ़ता जाता है
तमन्नाएं यूं भी असल होती है

तेरी साफगोई से ऐतराज़ इतना है
परदादारी इश्क का शगल होती है

तुझे कौन खरीद सकता है भला
बिकती है वही जो नकल होती है

© अजीत



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