हवा पेड़ के सारे पत्ते नही हिलाती
वो टोकती है सूखे पत्तों को
थोड़ी इनकार के बाद वो
चल पड़ते है धरती से मिलने
हवा का प्रलोभन एक सम्मोहन है
वो रचती है हरे पत्तो की मदद से संगीत
उनकी फडफडाहट सूखे पत्तो को
उकसाने का प्रायोजन मात्र होता है
बेचारी कमजोर शाखाएं
चाहकर भी नही रोक पाती
अपने कमजोर पुत्रों को
स्पंदन के झटके हवा लगाती
पत्तो के कान में गुदगुदी करती
फिर सबसे कमजोर पत्ते
खुद को अलग कर नाचते हुए
जमीन की तरफ बढ़ते
थोड़े बेहोश थोड़े बेफिक्र
उनकी कलाबाजी पर हरे पत्ते
झूठे गीत गाते या फिर
उनकी भावुक मूर्खता पर
तालियां बजाते
ये जो हवा की सरसराहट से
पत्तो का हिलना हम देखतें है
वो हवा के षड्यंत्र और
हरे पत्तो की मूक सहमति का
विजयनाद होता है
सूखे पत्ते कभी नही जान पाते
ये सब
क्योंकि उनका
सम्मोहन तब तक रहता है
जब तक पत्ते गीली जमीन में न धंस जाएं
और पेड़
वो अक्सर हवा से रहता है नाराज़
हवा सुहावनी होने के बाद भी
भंग करती है उसका एकांत
सुहानी हवा का यह एक क्रूर पक्ष है
जिसे जानने के लिए
पेड़ होना पड़ता है
सूखे पत्ते जेब में रख
सोना पड़ता है भूखे पेट
तब नींद में खुलता है यह सब भेद
इनदिनों हवा अच्छी नही लगती
जिसकी वजह मौसम नही
हवा की ये चालाकियां है।
© डॉ.अजीत
वो टोकती है सूखे पत्तों को
थोड़ी इनकार के बाद वो
चल पड़ते है धरती से मिलने
हवा का प्रलोभन एक सम्मोहन है
वो रचती है हरे पत्तो की मदद से संगीत
उनकी फडफडाहट सूखे पत्तो को
उकसाने का प्रायोजन मात्र होता है
बेचारी कमजोर शाखाएं
चाहकर भी नही रोक पाती
अपने कमजोर पुत्रों को
स्पंदन के झटके हवा लगाती
पत्तो के कान में गुदगुदी करती
फिर सबसे कमजोर पत्ते
खुद को अलग कर नाचते हुए
जमीन की तरफ बढ़ते
थोड़े बेहोश थोड़े बेफिक्र
उनकी कलाबाजी पर हरे पत्ते
झूठे गीत गाते या फिर
उनकी भावुक मूर्खता पर
तालियां बजाते
ये जो हवा की सरसराहट से
पत्तो का हिलना हम देखतें है
वो हवा के षड्यंत्र और
हरे पत्तो की मूक सहमति का
विजयनाद होता है
सूखे पत्ते कभी नही जान पाते
ये सब
क्योंकि उनका
सम्मोहन तब तक रहता है
जब तक पत्ते गीली जमीन में न धंस जाएं
और पेड़
वो अक्सर हवा से रहता है नाराज़
हवा सुहावनी होने के बाद भी
भंग करती है उसका एकांत
सुहानी हवा का यह एक क्रूर पक्ष है
जिसे जानने के लिए
पेड़ होना पड़ता है
सूखे पत्ते जेब में रख
सोना पड़ता है भूखे पेट
तब नींद में खुलता है यह सब भेद
इनदिनों हवा अच्छी नही लगती
जिसकी वजह मौसम नही
हवा की ये चालाकियां है।
© डॉ.अजीत
बढ़िया रचना ।
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