Tuesday, September 16, 2014

इज़ाजत

जो हो इजाजत...
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जो हो इज़ाजत तो
कुछ देर सुबकता रहूँ
तेरी गोद में
शिकायत करते
बच्चे की तरह।

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जो हो इज़ाजत
सपनों को तकसीम करूं
तमन्नाओं को जमा- नफ़ी करूं
और हासिल आए
सिफर ।
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जो हो इज़ाजत तो
तेरी कान की बालियों
की घंटी बजा
कान में फूंक दूं
महामृत्युंजय मंत्र।
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जो हो इज़ाजत
तेरे हाथ पर अपना हाथ
रख दूं पल दो पल
ताकि रेखाएं
अपने रास्ते मिला
बना सके कोई मानचित्र।
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जो हो इज़ाजत
पूछूं तेरा पता
अधूरे तसव्वुर और
अपनी चाहतों के
खत रवाना करूं
बैरंग।
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जो हो इज़ाजत
तेरी आँखों से
गुफ्तगू करूं
पलकों की खिड़कियाँ हो
काजल के रास्ते हो
और
सपनों की चादर।
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जो हो इज़ाजत
तेरी मुस्कान
उधार लूं
हंसी बाँट दूं
आंसू सोख लूं
उदासी ओढ़ लूं
कभी-कभी।

© डॉ.अजीत

2 comments:

  1. सिसकता रहा हूँ की जगह सिसकता रहूँ लिखें अगर तो ?

    बहुत सुंदर ।

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