Sunday, April 19, 2015

उनदिनों

जिन दिनों तुम्हारे प्रेम में था मैं
धरती का व्यास याद था मुंहज़ुबानी
बता सकता था पेड़ की पत्तों की संख्या
खींच सकता था
धरती सूरज चाँद के मध्य सीधी रेखा
ग्रह नक्षत्रों को कर सकता था स्तम्भित
नदी को भर सकता था ओक में
झरनें को उछाल सकता कुछ प्रकाश वर्ष ऊपर
समन्दर के तल पर रख सकता था कुछ बोरी सीमेंट
परवा हवा को खींच फूंक से बना सकता था पछुवा
जिन दिनों तुम्हारे प्रेम में था मै
उनदिनों,
तीन सौ पैसठ दशमलव दो चार दिन का था साल
साढ़े बाईस घंटे के होते थे दिन रात
इतवार आ जाता पौन घंटे पहले
शनिवार जाता था सवा घंटे विलम्ब से
ये जो समय आगे पीछे चल रहा था
इसकी एक वजह यह भी थी
अपनी घड़ी मिला ली थी मैंने
तुम्हारी मुस्कान से
जिन दिनों तुम्हारे प्रेम में था मैं
देख लेता था वाक्यों के मध्य फंसे अपनत्व को
जोड़ लेता शिकायतों की संधि
भेद कर पाता था संज्ञा और सर्वनाम में
लगा सकता था शंका पर पूर्णविराम
मिटा सकता था थूक से प्रश्नचिन्ह
कर सकता था तुम्हारी हंसी का अनुवाद
मध्यम नही उत्तम पुरुष था मैं
काल के हिसाब से
जिन दिनों तुम्हारे प्रेम में था मैं
उन दिनों मैं बस मैं नही था
कुछ और था
क्या था
ये तुमसें बेहतर कौन बता सकता है।

© डॉ. अजीत 

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