Thursday, April 23, 2015

स्वप्न

स्वप्न में भूल जाता हूँ
कवि होना
मनुष्य होना
भाई बेटा पति पिता होना
स्वप्न में भूल जाता हूँ
अक्षर ज्ञान
लिपि भाषा और बोली
स्वप्न में भूल जाता हूँ
धरती का भूगोल
गुरुत्वाकर्षण का केंद्र
मौसम दिन और रात
यहां तक स्वप्न में भूल जाता हूँ खुद की
आयु लिंग धर्म और जाति
स्वप्न में भूल जाता हूँ
दोस्तों के नाम और चेहरें
स्वप्न में भूल जाता हूँ
नदियों के उदगम् स्थल
झरनों की ऊंचाई
झील का आकार
और समन्दर की गहराई
बमुश्किल पांच दस मिनट के स्वप्न में
भूल जाता हूँ सारी स्मृतियां
बस एक बात
आज तक नही भूला
स्वप्न में भी
तुमसे पहला और अंतिम
प्रेम किया है मैनें
ये बात होश और स्वप्न में
रहती है याद
एकदम बराबर
ये अलग बात कि
चेतना के मुहानें पर
आइस पाइस खेलती हुई
बदलती रहती हो
तुम अपना घर।

©डॉ. अजीत

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