Saturday, May 2, 2015

मन

सबसे पहलें मेरे अंदर का
बच्चा मरा
फिर आदमी
फिर इंसान
और अब देह
मेरी मौत बिलकुल संदिग्ध नही है
यह उतनी ही स्वाभाविक है
जितनी तुम्हारें सपनें की मौत है
मन की मौत नही होती
आत्मा को अमर नही कह सकता
क्योंकि आत्मा देखी नही कभी
मगर
मन आज भी जानता हूँ
कई जन्मों पुराना है मेरा
वही विश्वासी मन
वहीं आहत मन
आधा और अधूरा मन।

© डॉ.अजीत

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