Friday, June 12, 2015

बोध


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धूप चुनती है उसे
डाकिया
बारिश चुनती है उसे
कर संग्रह अमीन
हवा बना देती है उसे
चपरासी
ढ़ोता है वो वायदों की फ़ाइल
इस दर से उस दर
धरती चाहती है
जरीब से उस पर लिख दें
प्रेम के तीन शब्द
उसकी किस्मत में लिखा है
मात्र लेखपाल होना।
***
वो दिशा भूल गया है
उत्तर को पूरब बताता है
दक्षिण को पश्चिम
पूरब और पश्चिम में भेद नही कर पाता
उसके पास एक मानचित्र है
जिसे देखकर वो केवल हंसता है
कई भाषाविज्ञानी
उसकी हंसी को डिकोड करने में लगे है
वो यारों का यार है
कोई विक्षिप्त मनुष्य नही।
***
उसकी दफ्तर की
दराज़ में कुछ ख्वाहिशें दफन है
वहां कागज के पुलिंदों के बीच
अटका रह गया है एक खत
जिसकी स्याही सूख रही है
लफ्ज़ मिट रहे है
पते की जगह
तीन लाईन की सीढियां बन गई है
वो पिनकोड के जरिए
पहूंचना चाहता है उसके दर तक
इनदिनों वो खुद को भूल
याद करता रहता है उसका पिनकोड।
***
झरनें भेजतें है
वजीफे नदी के नाम
नदी लेंने से मना कर देती है
झरनें अपमानित नही
उपेक्षित महसूस करते है बस
नदी हंस पड़ती
झरनें गाने लगते है बोझ का गीत
समन्दर देखता है
नदी का मनुष्य
और झरनें का देवता होना।

© डॉ. अजित 

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