Monday, October 5, 2015

प्रेम का विमर्श

उसनें सच्चाई से कहा एक दिन
प्रेम नही करती तुमसे मैं
मैंने धन्यवाद कहा
प्रेम करने से बचता नही है
प्रेम को जीना पड़ता है
अपने अपने हिसाब से।
***
तुम भी मुझसे प्रेम नही करते
मेरे बारें ये उसकी आम राय थी
मैंने कहा हां नही करता तुमसे प्रेम
मैं वो हर काम करने से बचता हूँ
जिसमें मूलयांकन अनिवार्य हो
मैं जीता हूँ बस तुम्हें सोचते हुए
बिना शर्त बन्धन मुक्त।
***
प्रेम में उड़ान भूल जाते है पंछी
भटक जाते है वो नीड़ से
यह कहते हुए
तुम उपदेशक की भूमिका में थी
मैंने कहा
भटकना भी जरूरी होता है प्रेम में
बंधकर नही किया जाता कभी प्रेम
भटकन प्रेम का शाश्वत सच है।
***
प्रेम बंधन में बांधता है या मुक्त करता है
अचानक तुमनें ये दार्शनिक प्रश्न किया
प्रेम न बांधता है
न मुक्त ही करता है
प्रेम विस्तारित करता है
हमारे अस्तित्व का सच
सच प्रिय अप्रिय हो सकता है
फिर तुमनें प्रतिप्रश्न नही किया।

© डॉ. अजित

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