Wednesday, October 7, 2015

स्मृतियां

एक दिन केवल बच जाएंगे
स्मृतियों के भोजपत्र
जिन पर यंत्र की भाषा में लिखी होंगी
तुम्हारी हितकामनाएं
मैं भूल चूका हूँगा तब तक
उसकी प्राण प्रतिष्ठा के बीज मंत्र
उन्हें उड़ा देना होगा हवा में या फिर
बहा देना होगा बहते जल में
स्मृतियों की ऐसी गति देख
समय हंसेगा मुझ पर
और मैं खड़ा रहूंगा
थोड़ा निष्प्रभ थोड़ा अवाक्
मैं उस दिन की प्रतिक्षा में नही हूँ
इसलिए मुझमें उत्साह की मात्रा
कुछ प्रतिशत कम नजर आती है
स्मृतियों के औचित्य सिद्ध करने के
सूत्र नही मिलते किसी किताब में
ज्ञात अज्ञात के मध्य
ये रेंगती है अपने हिसाब से
स्मृतियों का उपयोग करना नही आता मुझे
इसलिए भी दुविधा में हूँ
तुम्हारे बिना
तुम्हारी स्मृतियों का क्या करूँगा मैं।

© डॉ. अजित

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