एक दरख्वास्त
तुम्हारी बेरुखी की दराज़ में
सबसे नीचे मुद्दत से रखी है
एक इस्तीफ़ा तुम्हारी मेज़ के कोने पर
नामालूम नाराज़गी के पेपरवेट तले दबा
अरसे से फडफड़ा रहा है
एक खत तुम्हारे डस्टबिन की मुहब्बत में
कुछ महीनों से गिरफ्तार है
स्याही की गोंद बना वो उसके दिल से चिपक गया है
एक बोसा तुम्हारी पलकों
की महीन दरारों में दुबका बैठा है
उसे डर है तुम्हारे आंसू उसका वजूद न खत्म कर दे
एक शिकायत
गंगाजल में जा मिली है
रोज़ आचमन के समय तुलसीदल के साथ
तुम उसे घूँट घूँट पीती है
मगर तुम्हें इसकी खबर नही है
कुछ मलाल तुम्हारे लॉन की घास के साथ उग आए है
वो रोज़ तुम्हारे नंगे पाँव के सहारे
तुम्हारे दिल में दाखिल होना चाहतें है
मगर तुम उन्हें खरपतवार समझ उखाड़ देती हो
कुछ बहाने,कुछ सात्विक झूठ और कुछ सफाईयां
रोज़ तुम्हारी चाय के कप के इर्द गिर्द भटकती है
तुम जैसे ही फूंक मारकर चाय से मलाई हटाती हो
वो उस तूफ़ान में भटकर
धरती के सबसे निर्जन कोने में पहूंच जाते है
तमाम कोशिशों के बावजूद भी
तुम्हारे वजूद में
नही दाखिल हो पा रहा है मेरा वो हलफनामा
जिसमें कहना चाह रहा हूँ
इस वक्त मुझे तुम्हारी सख्त जरूरत है
वक्त की चालाकियों में मिट रहें हरफ
बस एक लफ्ज़ बचा पाया हूँ बड़ी मुश्किल से
'ईश्वर मेरी मदद करें'।
©डॉ.अजित
तुम्हारी बेरुखी की दराज़ में
सबसे नीचे मुद्दत से रखी है
एक इस्तीफ़ा तुम्हारी मेज़ के कोने पर
नामालूम नाराज़गी के पेपरवेट तले दबा
अरसे से फडफड़ा रहा है
एक खत तुम्हारे डस्टबिन की मुहब्बत में
कुछ महीनों से गिरफ्तार है
स्याही की गोंद बना वो उसके दिल से चिपक गया है
एक बोसा तुम्हारी पलकों
की महीन दरारों में दुबका बैठा है
उसे डर है तुम्हारे आंसू उसका वजूद न खत्म कर दे
एक शिकायत
गंगाजल में जा मिली है
रोज़ आचमन के समय तुलसीदल के साथ
तुम उसे घूँट घूँट पीती है
मगर तुम्हें इसकी खबर नही है
कुछ मलाल तुम्हारे लॉन की घास के साथ उग आए है
वो रोज़ तुम्हारे नंगे पाँव के सहारे
तुम्हारे दिल में दाखिल होना चाहतें है
मगर तुम उन्हें खरपतवार समझ उखाड़ देती हो
कुछ बहाने,कुछ सात्विक झूठ और कुछ सफाईयां
रोज़ तुम्हारी चाय के कप के इर्द गिर्द भटकती है
तुम जैसे ही फूंक मारकर चाय से मलाई हटाती हो
वो उस तूफ़ान में भटकर
धरती के सबसे निर्जन कोने में पहूंच जाते है
तमाम कोशिशों के बावजूद भी
तुम्हारे वजूद में
नही दाखिल हो पा रहा है मेरा वो हलफनामा
जिसमें कहना चाह रहा हूँ
इस वक्त मुझे तुम्हारी सख्त जरूरत है
वक्त की चालाकियों में मिट रहें हरफ
बस एक लफ्ज़ बचा पाया हूँ बड़ी मुश्किल से
'ईश्वर मेरी मदद करें'।
©डॉ.अजित
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " सुपरहिट फिल्मों की सुपरहिट गलतियाँ - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहोत खूब।
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