Monday, June 20, 2016

चिट्ठी

तुम्हारा खत मिलतें ही
मैंने सबसे पहले चाहा एकांत

खत की खुशबू के लिए
मैंने चाहा खुला आकाश

तुम्हारी लिखावट से जब
मिलाना चाहा हाथ
वहां देखा पसरा हुआ संकोच

आखिर में जहां तुम्हारा नाम लिखा था
वहां लगा जैसे तुम बैठी हो
देख रही मुझे यूं अस्त व्यस्त
मुस्कुरा रही हो मंद-मंद

ये महज तुम्हारी एक चिट्ठी नही है
ये एक चिकोटी है
जो काटी है तुमनें मेरी गाल पर
पूछनें के लिए
कैसे हो मेरे बिना इनदिनों

मैं अक्षर गिन रहा हूँ
और तुम्हारी हथेली के स्पर्शों की
छायाप्रति निकाल कर रख रहा हूँ बायीं जेब में
कागज़ की तह से पूछ रहा हूँ तुम्हारा उत्साह
लिफाफे को रख दिया एक उपन्यास के बीच में

पहली फुरसत में लिखूंगा
दिन और रात का फर्क
दूरियों का भूगोल
उधेड़बुन का मनोविज्ञान
परिस्थितियों का षड्यंत्र
विलम्बित होती गई तिथियों का विवरण
कुछ शिद्दत के पुर्जे
कुछ बेबसी के कर्जे

अचानक एकदिन मिलेगी
तुम्हें मेरी चिट्ठी
जिसमें होगा
ज्यादा हाल ए दिल
थोड़ा हाल ए जहां
विश्वास करना मेरा
लिखता अक्सर हूँ
बस पोस्ट नही करता

क्यों नही करता
तुमसे बेहतर मैं भी नही जानता।

©डॉ.अजित

2 comments:

  1. चिट्ठी बांचने और लिखने का भी अपना एक अलग ही अंदाज है...
    बहुत सुन्दर

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  2. bahut sundar .......anutha andaj ......

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