Tuesday, October 4, 2016

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जब जब ये विज्ञापित करता हूँ मैं
ये चाहता हूँ मै
ये करना है मुझे
उसका एक अर्थ ये भी होता है
वो काम कभी नही होगा
शायद वैसा कभी नही करूँगा मैं

चाहना का प्रकाशन एक क्षणिक सुख है
नष्ट हुए वीर्य की तरह
ताप में विगलित हुए अंडे की तरह
उनकी कोई भूमिका नही होती
भ्रूण के निर्माण में
वो बाह्य की भटक कर
खो देते है अपना अर्थ
अपनी समस्त प्रकृति और संभावनाओं के साथ

क्षणिक रोमांच हत्यारा है
मनुष्य की दृढ इच्छाशक्ति का

लुत्फ़ जो लूट लिया अहा और वाह का
वो कभी करने नही देगा मुझे वो काम
ये बात ठीक से पता मुझे
इसलिए मत करना कभी यकीन
मेरी किसी उद्घोषणा का
चाहे वो किसी अभिनव लक्ष्य की हो
या फिर हो आत्महत्या की।

©डॉ.अजित

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