तुम्हारे अंदर उत्सव को लेकर
कोई उल्लास,उत्साह नही देखा कभी
कितने बोर आदमी हो तुम
जीवन के हर उत्सव को खारिज़ करने के
दार्शनिक तर्क है तुम्हारे पास
दरअसल वो सब भोथरे पलायन है तुम्हारे
तुम खुद से भाग रहे हो
इसलिए चाहते हो एकांत
भीड़ शोर हंसी में तुम्हें खो जाने का भय है
पिछली मुलाक़ात पर
ये सब बातें उसने लगभग एक साथ कही
मैं एक एक का जवाब देना चाहता था
मगर वो इतने प्रवाह में थी उसे सुनना नही था
वो दिन उसके कहने का दिन था
और मेरे सुनने का
जब मैंने अपनी सफाई में कोई दलील न दी
उसे लगा मैं सहमत हूँ उसकी स्थापनाओं से
वो चाहती थी कि उसको गलत साबित करूँ
बहस में नही जीवन में
मैंने कहा मौलिकता की अपनी एक स्वतंत्र यात्रा है
कुछ भी होना या न होना क्षणिक नही
शायद हमारा खुद का चयन भी नही
मनुष्य का हस्तक्षेप एक भरम है
उसका संस्करण निर्धारित होता अप्रत्यक्ष से
बेहद अरुचि से उसने मेरी बातें सुनी और कहा
इतनी भारी भारी बातें मेरी समझ से परे है
शायद तुम जीना भूल गए हो
जीवन बिखरा होता है छोटी छोटी खुशियों में
जिसे खुद ही तलाशना होता है
उम्मीद है एकदिन तुम सीख लोगे तलाशना
बस मेरे खो जाने से पहले तलाश लेना
मैं चाहती हूँ तुम्हारे जीवन में बचा रहे उत्सव
हर हाल में
मेरे साथ भी,मेरे बाद भी।
©डॉ.अजित
कोई उल्लास,उत्साह नही देखा कभी
कितने बोर आदमी हो तुम
जीवन के हर उत्सव को खारिज़ करने के
दार्शनिक तर्क है तुम्हारे पास
दरअसल वो सब भोथरे पलायन है तुम्हारे
तुम खुद से भाग रहे हो
इसलिए चाहते हो एकांत
भीड़ शोर हंसी में तुम्हें खो जाने का भय है
पिछली मुलाक़ात पर
ये सब बातें उसने लगभग एक साथ कही
मैं एक एक का जवाब देना चाहता था
मगर वो इतने प्रवाह में थी उसे सुनना नही था
वो दिन उसके कहने का दिन था
और मेरे सुनने का
जब मैंने अपनी सफाई में कोई दलील न दी
उसे लगा मैं सहमत हूँ उसकी स्थापनाओं से
वो चाहती थी कि उसको गलत साबित करूँ
बहस में नही जीवन में
मैंने कहा मौलिकता की अपनी एक स्वतंत्र यात्रा है
कुछ भी होना या न होना क्षणिक नही
शायद हमारा खुद का चयन भी नही
मनुष्य का हस्तक्षेप एक भरम है
उसका संस्करण निर्धारित होता अप्रत्यक्ष से
बेहद अरुचि से उसने मेरी बातें सुनी और कहा
इतनी भारी भारी बातें मेरी समझ से परे है
शायद तुम जीना भूल गए हो
जीवन बिखरा होता है छोटी छोटी खुशियों में
जिसे खुद ही तलाशना होता है
उम्मीद है एकदिन तुम सीख लोगे तलाशना
बस मेरे खो जाने से पहले तलाश लेना
मैं चाहती हूँ तुम्हारे जीवन में बचा रहे उत्सव
हर हाल में
मेरे साथ भी,मेरे बाद भी।
©डॉ.अजित
सुन्दर।
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