उसने पूछा
एक सच्चे कम्युनिस्ट का नाम बताओ
एक सच्चे फेमिनिस्ट का नाम बताओ
मैंने कहा
एक सच्चे प्रेमी का नाम बताऊं?
उसने कहा
नही मुझे अपोरचुनिस्ट का नाम नही जानना
क्या प्रेमी अवसरवादी होता है
मैंने प्रतिवाद किया
अवसरवादी तो पूरा कह नही सकती मगर
प्रेमी सच्चा प्रतीतवादी होता है
वो वही सब प्रतीत करवा देता है
जो कभी न रहा हो।
***
क्या तुम फेमिनिस्ट हो
उसने पूछा एकदिन
नही मैं वाक्यों के मध्य अटका ट्विस्ट हूँ
तुम उपयोग कर सकती है
जिसे अपने हिसाब से।
***
तुम्हारी क्या आइडियोलॉजी है?
लेफ्ट,राइट,सेंटर या न्यूट्रल हो
मैं वृत्त की तरह गोल हूँ
जहां से चलोगी वही पर
लौट आओगी एकदिन तुम
तुम इतना सावधान क्यों हो?
नही मैं तो लापरवाह मानता हूँ खुद को
मानते हो मगर हो नही
तुम्हारे हिसाब से क्या हूँ मै?
हिसाब तो रखा नही कभी
मगर पुरूष होने के बावजूद मासूम हो
मासूमियत ही तुम्हारी आइडियोलॉजी है।
***
क्या सुन रही हो आजकल
मैने यूं ही पूछ लिया एकदिन
जगजीत सिंह को
मुझसे बिछड़कर खुश रहते हो मेरी तरह तुम भी झूठे हो...
बिछड़ कर कौन खुश रहता है,मैंने पूछा
वही जो कभी मिले नही हो
और जो मिले हो कभी?
वो झूठ बोलकर खुश रहते है
ख़ुशी यानि झूठ की मांग करती है
मैंने बात बदलते हुए कहा
ऐसा भी नही है, दरअसल
झूठ बोलना सच का हिस्सा होता है कभी कभी
अपना अपना सच
अक्सर अकेले में झूठ बोलता है।
©डॉ.अजित
एक सच्चे कम्युनिस्ट का नाम बताओ
एक सच्चे फेमिनिस्ट का नाम बताओ
मैंने कहा
एक सच्चे प्रेमी का नाम बताऊं?
उसने कहा
नही मुझे अपोरचुनिस्ट का नाम नही जानना
क्या प्रेमी अवसरवादी होता है
मैंने प्रतिवाद किया
अवसरवादी तो पूरा कह नही सकती मगर
प्रेमी सच्चा प्रतीतवादी होता है
वो वही सब प्रतीत करवा देता है
जो कभी न रहा हो।
***
क्या तुम फेमिनिस्ट हो
उसने पूछा एकदिन
नही मैं वाक्यों के मध्य अटका ट्विस्ट हूँ
तुम उपयोग कर सकती है
जिसे अपने हिसाब से।
***
तुम्हारी क्या आइडियोलॉजी है?
लेफ्ट,राइट,सेंटर या न्यूट्रल हो
मैं वृत्त की तरह गोल हूँ
जहां से चलोगी वही पर
लौट आओगी एकदिन तुम
तुम इतना सावधान क्यों हो?
नही मैं तो लापरवाह मानता हूँ खुद को
मानते हो मगर हो नही
तुम्हारे हिसाब से क्या हूँ मै?
हिसाब तो रखा नही कभी
मगर पुरूष होने के बावजूद मासूम हो
मासूमियत ही तुम्हारी आइडियोलॉजी है।
***
क्या सुन रही हो आजकल
मैने यूं ही पूछ लिया एकदिन
जगजीत सिंह को
मुझसे बिछड़कर खुश रहते हो मेरी तरह तुम भी झूठे हो...
बिछड़ कर कौन खुश रहता है,मैंने पूछा
वही जो कभी मिले नही हो
और जो मिले हो कभी?
वो झूठ बोलकर खुश रहते है
ख़ुशी यानि झूठ की मांग करती है
मैंने बात बदलते हुए कहा
ऐसा भी नही है, दरअसल
झूठ बोलना सच का हिस्सा होता है कभी कभी
अपना अपना सच
अक्सर अकेले में झूठ बोलता है।
©डॉ.अजित
बढ़िया।
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