एकदिन थककर स्त्री
वापिस ले लेती है
अपने पूरे सवाल
आधे सन्देह
और एक चौथाई सम्भावना
वो ओढ़ लेती है
एक जीवट मुस्कान
पुरुषार्थ की अधिकांश विजय
ऐसी मुस्कानों पर ही खड़ी होती है तनकर
स्त्री के पास होता है
बेहद एकांतिक अनुभव
जिसे नही बांटती वो किसी अन्य स्त्री से भी
यही बचाता है उसके अंदर
एकालाप की ऐसी हिम्मत
जिसके भरोसे वो
पुरुषों की दुनिया में बनी रहती है
एक अबूझ पहेली
प्रेम स्त्री की थकन नही नाप पाता
घृणा स्त्री की अनिच्छा नही देख पाती
दोनों की मदद से
जब पुरुष करता है
किसी की किस्म का कोई दावा
तब स्त्री रोती है अकेले में
ये बात केवल जानता है ईश्वर
मगर वो नही बताता
किसी पुरूष का कान पकड़कर
एकांत का यह अन्यथा जीया दुख
और भला बता भी कैसे सकता है
पुरुष ने उसका हाथ चिपका रखा है
हमेशा से खुद के सिर पर
एक स्थाई आशीर्वाद की शक्ल में
स्त्री इसलिए ईश्वर से नही करती
कोई शिकायत
वो जानती है ठीक ठीक यह बात
जो सबका है
कम से कम उसका तो
बिल्कुल नही हो सकता है।
©डॉ. अजित
वापिस ले लेती है
अपने पूरे सवाल
आधे सन्देह
और एक चौथाई सम्भावना
वो ओढ़ लेती है
एक जीवट मुस्कान
पुरुषार्थ की अधिकांश विजय
ऐसी मुस्कानों पर ही खड़ी होती है तनकर
स्त्री के पास होता है
बेहद एकांतिक अनुभव
जिसे नही बांटती वो किसी अन्य स्त्री से भी
यही बचाता है उसके अंदर
एकालाप की ऐसी हिम्मत
जिसके भरोसे वो
पुरुषों की दुनिया में बनी रहती है
एक अबूझ पहेली
प्रेम स्त्री की थकन नही नाप पाता
घृणा स्त्री की अनिच्छा नही देख पाती
दोनों की मदद से
जब पुरुष करता है
किसी की किस्म का कोई दावा
तब स्त्री रोती है अकेले में
ये बात केवल जानता है ईश्वर
मगर वो नही बताता
किसी पुरूष का कान पकड़कर
एकांत का यह अन्यथा जीया दुख
और भला बता भी कैसे सकता है
पुरुष ने उसका हाथ चिपका रखा है
हमेशा से खुद के सिर पर
एक स्थाई आशीर्वाद की शक्ल में
स्त्री इसलिए ईश्वर से नही करती
कोई शिकायत
वो जानती है ठीक ठीक यह बात
जो सबका है
कम से कम उसका तो
बिल्कुल नही हो सकता है।
©डॉ. अजित
बढ़िया।
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