Saturday, March 31, 2018

भोर का स्वप्न

अभी तुम्हारा ख्याल आया
और तुम आ गए
एक चिट्ठी की तरह

मैंने डाकिए से
किसी बुजुर्ग की तरह नही पूछा
तुम्हें आने में कितना वक्त लगा

मैंने तुम्हे चिट्ठी की तरह पढ़ा
बल्कि कम लिखे को अधिक पढ़ा

जब तुम आए
मैं गा रही थी एक लोकगीत
जिसमें याद किया जाता है
सबसे पहला प्रेमी

तुम देख
मुझे याद आया
मेरा सबसे पहला प्रेमी

जब तुम जाने लगे
हवा की तरह
मेरा जी हुआ बन जाऊं
एक चट्टान और बदल दूं
तुम्हारी दिशा

मगर मैं बन गई एक नदी
जिसमें बहा दी जाती है
पुरानी चिट्ठियां
और अर्घ्य दिया जाता है
अपने ज्ञात देवताओं को

तुम चिट्ठी की तरह आए
और पानी की तरह चले गए

मैं बस देखती रह गई
सतह की काई
और आकाश की ऊंचाई

मुझे तुम्हारे साथ उड़ना था
फिसलना भी था
मगर गिरना नही था

इसलिए
तुम्हें बन्द किया लिफाफे की तरह
चिपकाकर आँसुओं के गोंद से
और रख दिया तकिए के नीचे

ताकि नींद में तुम आओ
चिट्ठी की तरह नही
किसी भोर के उस सपनें की तरह

जो किसी को बताया न जा सके।

©डॉ. अजित

7 comments:

  1. वाह
    बहुत सुंदर

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  2. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ० २ अप्रैल २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

    निमंत्रण

    विशेष : 'सोमवार' ० २ अप्रैल २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने सोमवारीय साप्ताहिक अंक में आदरणीय 'विश्वमोहन' जी से आपका परिचय करवाने जा रहा है।


    अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

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  3. चिठ्ठी की भांति हम ....वाह

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  4. मैंने तुम्हें चिट्ठी की तरह पढ़ा .....

    तुम चिट्ठी की तरह आए
    पानी की तरह चले गए ....👌👌👌👌👌👌

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  5. मैंने तुम्हें चिट्ठी की तरह पढ़ा .....

    तुम चिट्ठी की तरह आए
    पानी की तरह चले गए ....👌👌👌👌👌👌

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