Tuesday, January 22, 2019

दुष्ट


एक दीगर बातचीत में
तुमनें मुझे
एक बार मेरे नाम से पुकारा
एक बार व्याकरण का सहारा लेकर
छुपा लिया मेरा नाम
और अंत में हँसते हुए कहा दुष्ट

मैं तुम्हारा नाम लेने की
मन ही मन भूमिका बनाता रह गया हर बार
अधूरे रहें मेरे सारे सम्बोधन

ऐसा नही कि तुम्हारे नाम पुकारनें का
आत्मविश्वास नही था मेरे पास
बस मैं पुकार नही पाया कभी
तुम्हें तुम्हारे नाम से

जब तुमने दुष्ट कहा मुझे
यकीन करना दोस्त !
ठीक उस वक्त मुझे हुआ यह अहसास
कि सच में कितना बड़ा हूँ मैं.

© डॉ. अजित

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