Tuesday, January 8, 2019

भार

उसे सब कुछ अच्छा
अपने पास चाहिए था
सबसे अच्छे दोस्त
सबसे अच्छी किताबें
सबसे अच्छे फोटो
वो हर अच्छाई की तलाश में व्याकुल थी

उसके निजी संग्रहालय में
रौशनी की सख्त दरकार थी
जिसके लिए वो भरोसे थी
अच्छे दोस्तों के
अच्छी किताबों के
और अच्छी फोटो के

उसकी अधीरता देख
ईश्वर हंसता था अकेले में
और मनुष्य रोता था भीड़ में

वो मुद्दत से जोड़ रही थी
सब बढ़िया ही बढ़िया
इसलिए उसके पास नही बची थी
जगह किसी खराब चीज़ के लिए

खराब चीजें उसके पास से
हट गई थी स्वत:
अच्छाई के भार से
वो इस कदर दबी थी

उसे दिलाना पड़ता था याद
कोई खराब प्रसंग
ताकि जीवन में बचा रहे
अच्छे-खराब का संतुलन

जिसे वो समझती थी ईर्ष्या।

©डॉ. अजित

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