ज़बान की कीमत लफ्जो मे बह गई
जिन्दगी एक तमाशा बन कर रह गई
मुक्कमल ख्वाबों की बैचनी थी नसीब
ये बात नदी समन्दर से कह गई
मुस्कान नजर मे थी अफसाने दिल मे
हकीकत उसकी उदासी कह गई
न मिलने की फिक्र न बिछडने का गम
दोस्ती फिर आपसे किस बात की रह गई
उसने छोडा बेफिक्री से मुझे क्यों
वो हालात मेरी फटी जेब कह गई
मदारी का तमाशा देखा तो समझ मे आया
हुनर अब हाथ की सफाई और नजरबन्दी रह गई
तन्हाई मे उदासी ने टोक कर पूछा
मन भर गया अब या कुछ कमी रह गई
दिल से लगा लेता हूं हर बात
बस ये आदत बुरी रह गई....।
डा.अजीत
मुक्कमल ख्वाबों की बैचनी थी नसीब
ReplyDeleteये बात नदी समन्दर से कह गई
बहुत खूबसूरत गज़ल ..
Amazing .
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