Sunday, September 5, 2010

आदत

ज़बान की कीमत लफ्जो मे बह गई

जिन्दगी एक तमाशा बन कर रह गई

मुक्कमल ख्वाबों की बैचनी थी नसीब

ये बात नदी समन्दर से कह गई

मुस्कान नजर मे थी अफसाने दिल मे

हकीकत उसकी उदासी कह गई

न मिलने की फिक्र न बिछडने का गम

दोस्ती फिर आपसे किस बात की रह गई

उसने छोडा बेफिक्री से मुझे क्यों

वो हालात मेरी फटी जेब कह गई

मदारी का तमाशा देखा तो समझ मे आया

हुनर अब हाथ की सफाई और नजरबन्दी रह गई

तन्हाई मे उदासी ने टोक कर पूछा

मन भर गया अब या कुछ कमी रह गई

दिल से लगा लेता हूं हर बात

बस ये आदत बुरी रह गई....।

डा.अजीत

2 comments:

  1. मुक्कमल ख्वाबों की बैचनी थी नसीब
    ये बात नदी समन्दर से कह गई

    बहुत खूबसूरत गज़ल ..

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