बात सोचने पर कडवी लगी
सुनकर जिसे खुश हुआ था
किस्सा हमारा था अपना
तमाशा दुनिया को लगा था
एक फूंक मे उड गया वजूद
लकीर का फकीर जो बना था
बेफिक्री उनकी काबिल-ए-तारीफ
फिक्रमंद तो महफिल की तौहीन हुआ था
अहसास ज़ज्बात के साथ दफन हुए
जख्म लेकिन अन्दर से हरा था
वो जब भी मिला बेबस ही मिला
ऐतबार तो इम्तिहान की हद था...।डा.अजीत
बहुत सुन्दर ..भावों को बखूबी लिखा है ..
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावों को सरल भाषा में कहा गया है. अच्छी रचना
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