Sunday, August 24, 2014

सात इतवार: कुछ यादें कुछ बातें



जैसे थका हारा परिंदा लौट आता है
लौट आऊंगा मै भी
एक दिन
इंतजार मत करना।

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सपनों के पीछे भागने से
बेहतर है तुम्हे देखना
तुम्हें देखते हुए ख्याल आता है
बेहतर जिन्दगी का।

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तुम्हारी गोद
ब्रह्मांड के हाशिए पर थी
इसलिए वक्त लगा
अंतिम सांस उसमे लेते हुए।

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तुम्हारे स्पर्श
इतने कलात्मक थे कि
मेरी पीठ आज तक
रंगी हुई है/टंगी हुई है
रंगशाला में।

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तुम्हारी चुप्पी
मेरे मौन से गहरी थी
तुम सिद्ध हो गई
और मै गृहस्थ।
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दस साल का फांसला
दूर करता है तुम्हें
अक्ल, उम्र और सड़क
कभी कितनी लम्बी हो जाती है
और हम छोटे।
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तुम्हारा काजल
बूढ़ी गुफा है
मुस्कुराती हो तो
अंदर रोशनी आती है
मै देखता हूँ अंदर खुद को
नंगे पाँव।
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© अजीत

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