Friday, November 14, 2014

जैसे

'जैसे-कैसे-वैसे...'
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तुम्हारा खफा होना
जैसे
वक्त का खुदा होना
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तुम्हारा जुदा होना
जैसे
भीड़ में तन्हा खोना
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तुम्हारी खुशी
जैसे
बुखार में दवा की शीशी
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तुम्हारी हंसी
जैसे
कवियों में शशि
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तुम्हारी मुस्कान
जैसे
उम्मीद की दुकान
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तुम्हारे अश्क
जैसे
बड़ी उम्र का इश्क
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तुम्हारा गुस्सा
जैसे
फकीर मांगे अपना हिस्सा
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तुम्हारी बेरुखी
जैसे
जिन्दगी हो रुकी
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तुम्हारी फ़िक्र
जैसे
आयतों का हो जिक्र !
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तुम्हारा प्यार
जैसे
बारिश का बुखार
© डॉ.अजीत

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