मुझे आदत नही है हंसने की
बेवजह भी हंसा देते हो तुम
थक कर कब्र में सो जाता हूँ मै
सुबह नींद से जगा देते हो तुम
जो गुनाह मैंने ख्वाबों में किए है
हकीकत में उनकी सजा देते हो तुम
रफ़्ता रफ़्ता दूर जा रहे हो हमसें
बातों ही बातों में ये बता देते हो तुम
तन्हाई में मिलो कभी तो बातें हो
भीड़ का अक्सर पता देते हो तुम
फ़िक्र बहुत करते हो मेरी सच है
अफ़सोस ये कि जता देते हो तुम
© डॉ. अजीत
बेवजह भी हंसा देते हो तुम
थक कर कब्र में सो जाता हूँ मै
सुबह नींद से जगा देते हो तुम
जो गुनाह मैंने ख्वाबों में किए है
हकीकत में उनकी सजा देते हो तुम
रफ़्ता रफ़्ता दूर जा रहे हो हमसें
बातों ही बातों में ये बता देते हो तुम
तन्हाई में मिलो कभी तो बातें हो
भीड़ का अक्सर पता देते हो तुम
फ़िक्र बहुत करते हो मेरी सच है
अफ़सोस ये कि जता देते हो तुम
© डॉ. अजीत
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (10-11-2014) को "नौ नवंबर और वर्षगाँठ" (चर्चा मंच-1793) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर हमेशा की तरह लाजवाब ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteबढ़िया ग़ज़ल है खबर लेती है प्यार जताने वालों की। प्यार करना और बात है।
ReplyDelete