Monday, January 12, 2015

मन के विज्ञापन

कुछ मन के विज्ञापन...
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तुम्हारा साथ
अब जीवन बीमा की तरह चाहिए था
जिंदगी के साथ भी
और जिंदगी के बाद भी।
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चाहता हूँ
हमारे भविष्य को लेकर
थोड़ा बहुत डरती रहो तुम
क्योंकि
डर के आगे जीत है।
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तुम्हारा अचानक आना
उदासी के पलों में भी
मुस्कुराना
बच्चों की तरह समझाना
खुशियों की होम डिलीवरी
इसी को कहते है शायद।
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तमाम नाराज़गियों
गुस्ताखियों और
बिछड़ने के सच के बावजूद
गार्नियर की तरह
नही भूलती कहना
ख्याल रखना अपना।
***
हद दर्जे की
सांसारिक व्यस्तताओं के बीच
न जाने कब
समझ पाओगी
दिल के नेटवर्क की ये बात
दूरियों का मतलब फांसलें नही।
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© डॉ. अजीत

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