Monday, March 9, 2015

इति

एक ही बात कितनें
संकेतो में कही गई
अरुचि का इससे अधिक
सम्मानजनक प्रकटीकरण
नही हो सकता था
आरोपित अपनत्व की आयु
अधिक नही होती
मेरे एकालाप में दबते रहें
तुम्हारे समाप्ति के स्वर
इसलिए आज समझकर
तुम्हारे सब संकेत
मुक्त करता हूँ
अपने आग्रही प्रेम से
मुझे ठहराव में जीने की आदत है
और तुम्हें गति से प्रेम
बात यह भी नही है कि
कौन सही या गलत है
बात सिर्फ इतनी है
हम शायद एक दुसरे को
उतना नही समझ पाए
जितना समझना अनिवार्य था
इसलिए साथ का मतलब
हर हाल में साथी नही होता
और सम्बन्ध का अर्थ
हर बार स्थाईत्व नही होता
अस्थिर मन से
यही उपसंहार है
इस मेल मिलाप का
जिसे इति की युक्ति भी
समझ सकती हो तुम।

© डॉ. अजीत

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