Saturday, June 24, 2017

कायदे से

कायदे से
इतनी मुस्कान तो होनी ही चाहिए
मनुष्य के पास
कि बुरे वक्त में
जिसे दिया जा सके
किसी जरूरतमंद को उधार

मगर मुस्कान होती है
खुद के पास महज इतनी
जिसे खर्च किया जा सकता है
फोटो खिंचवाते वक्त
जब फोटो क्लिक करने वाला कहे
स्माइल प्लीज़
और आप फैला दें
होंठो का अधिकतम विस्तार

कायदे से
इतनी हंसी तो होनी ही चाहिए
मनुष्य के पास
वो हंस सके बुक्का फाड़कर
दोस्तों के बीच

मगर हंसी होती है मूड की गुलाम
आप तब हंसते है
जब हंसना हो एक शिष्टचार
रोने की तर्ज पर जब हंसी आती है
तब वो बन जाती है एक ध्यान
रोने की तर्ज़ इसलिए
सबके लिए सीखनी जरूरी है

कायदे से तो यह भी होना चाहिए
जब कोई कहे अपने दुःख
हम जवाब में अपने दुःख भी कहे
दुःख के लिए यह हौसले से बड़ी
सांत्वना है

मगर दुःख सुनकर मनुष्य
करना चाहता है सलाह का कारोबार
जिनके पास अपने दुःख का निदान नही
उनके पास बी पॉजिटिव रहने के कोट्स
मिलेंगे हजार

कायदे से बहुत कुछ
नही होना दुनिया में
मगर वो सब कुछ मौजूद है
अपनी तीव्रता के साथ

और कायदे से जो होना चाहिए
वो घटित होता है हमेशा
अनुचित और अवांछित ढंग से

इसलिए
तमाम दुनियावी कायदे पढ़ने के बाद भी
मनुष्य है एकदम अनपढ़

सभ्यता मनुष्य के अनपढ़ होने का विज्ञापन है
जिसे प्रचारित किया गया है
ज्ञान के  विकास के तौर पर

कायदे से
मनुष्य को सबसे पहले करनी चाहिए
खुद से एक गहरी मुलाकात
ताकि जान सके
खुद के धूर्त होने की अधिकतम सीमा

मगर वो फिलहाल व्यस्त है
मनुष्य को मनुष्य के तौर पर
खारिज़ करने में
समझ का यह क्रूर पक्ष है
जो दिखाई नही देता है।

©डॉ. अजित

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