मैं
अपनी स्मृतियों से चूका हुआ और
उत्तम
और मध्यम के बीच अटका
एक
पुरुष हूँ
मेरी
पूर्व प्रेमिका ने मुझे
सदा
सुखी रहने का आशीर्वाद दिया था
और
वर्तमान प्रेमिका ने शाप दिया है
कि
मैं सदा भीड़ से घिरा रहा हूँ
मैं
अकलेपन की तलाश में हूँ
मगर
मेरी तलाश में
कुछ
वक्त की शिकायतें है
प्रेमिका
समेत हर रिश्तें का प्रेम
नही
बचा सकता फिलहाल
मुझे
चोटिल होने से
मेरे
घाव इतने गुम किस्म के है
उन्हें
देख याद आता है शरीर सौष्ठव
मैं
किसी किस्म की उपचार की उम्मीद में नही
हूँ
क्योंकि
मैं जानता हूँ
उपचार
बीमारी का हो सकता है
बीमार
का नही
मेरी
बातों की ध्वनि से नकार की गंध आती है
मगर
ये मेरे जीवन चरम आशावाद है
कि
मैं हर हाथ को चूमना चाहता हूँ
मगर
जैसे ही बढ़ता हूँ आगे
मेरी
स्मृतियाँ दे जाती दगा
और
मैं चूम लेता हूँ खुद ही का हाथ
मेरा
स्वाद हो गया है बेहद एकनिष्ठ
मेरे
होंठ नही पहचानते है
मेरी
खुद की जीभ को
मैं
जैसे ही गुनगुनाता हूँ कोई गाना
तो
भूल जाता हूँ अंतरे और मुखड़े का भेद
इस
पर गाना नही बदलता मैं
बस
गाना चबाने लगता हूँ
इस
शाब्दिक हिंसा के लिए
गीतकार
मुझे नही करेगा कभी माफ़
दरअसल,
ये जो ‘मैं’ –‘मैं’ लिखकर
बकरा
बन रहा हूँ मैं
ये
भी मेरी स्मृतियों के चूकने का परिणाम ही है
मनुष्य
और बकरे के भेद में
ढह
गया है मेरा बचा-खुचा पुरुषार्थ
मुझे
जो भी कुछ याद है
वो
सफाई का एक बुद्धिवादी संस्करण है
मैं
जो कुछ भूल गया हूँ
वो
मेरा निजी व्याकरण था
मेरे
पास फिलहाल है
लिपि
का अन्धकार
और
शब्दों का रौशनदान
जहां
से मैं रोज़ देखता हूँ
अपनी
स्मृतियों के उड़ते हुए कबूतर
जिन्हें
आप समझ सकते है
मेरी
आत्मिक शान्ति का प्रतीक
ऐसा
ना भी समझे तो भी नही पड़ेगा
मुझे
कोई ख़ास फर्क
मेरी
स्मृतियों ने मुझे बना दिया
इतना
मजबूत और कमजोर एक साथ
कि
अब मैं हंस सकता हूँ
छोटे
अपमान पर
मैं
रो सकता हूँ किसी बड़े सम्मान पर
स्मृतियों
से चूकने का
मेरे
पास यही सबसे लौकिक प्रमाण है
जिसे
कविता की शक्ल में
लिख
दिया है इसलिए
‘ताकि
सनद रहे’
©डॉ.
अजित