जब खुद के अंदर बाहर रहना
तब क्यों किसी को बुरा कहना
सारे ऐब ही जब हमारे अंदर है
मत आदतन हमे अब खुदा कहना
समन्दर से गुफ़्तगु तुम करते हो
नदी से पूछते क्या होता है बहना
दर ब दर किस्मत में लिखा था
हम क्या जानें एक मकाँ में रहना
रंज ओ' मलाल जेवर थे जिंदगी के
वक्त बेवक्त जिन्हें था हमनें पहना
निकल जाऊँगा चुपचाप अकेला मैं
बस कुछ दिन और इसी तरह सहना
© डॉ.अजित
तब क्यों किसी को बुरा कहना
सारे ऐब ही जब हमारे अंदर है
मत आदतन हमे अब खुदा कहना
समन्दर से गुफ़्तगु तुम करते हो
नदी से पूछते क्या होता है बहना
दर ब दर किस्मत में लिखा था
हम क्या जानें एक मकाँ में रहना
रंज ओ' मलाल जेवर थे जिंदगी के
वक्त बेवक्त जिन्हें था हमनें पहना
निकल जाऊँगा चुपचाप अकेला मैं
बस कुछ दिन और इसी तरह सहना
© डॉ.अजित