Thursday, December 2, 2021

अपवाद

 

उसने कहा

अब तुम्हारे लिए दिलचस्पी मर गयी है मेरी

इसलिए अब यह न पूछो करो

कि क्या कर रही हूँ मैं

मैंने कहा ठीक है

नहीं पूछूंगा

उसने थोड़ा नाराज होते हुए कहा

दिलचस्पी मरने की एक वजह यह भी रही

बड़ी जल्दी मान ली तुमनें मेरी हर एक बात.

**

मैंने कहा

क्या जरूरी है कि

एक दुसरे का दिल दुखाकर अलग हुआ जाए

उसने कहा, शायद हाँ

क्योंकि वजह जरूरी होती है ज़िन्दगी में

मैंने पूछा यदि बिना दिल दुखाए अलग हुआ जाए तो?

उसने कहा

हो सकते हो

मगर फिर हम दोबारा एक न हो पाएंगे कभी

दिल का दुखना संभावना बचाएगा

फिर से मिलने की.

**

उसने हंसकर कही हर वो बात

जो बेहद गम्भीर थी

उसकी गम्भीर बातों में हमेशा

छिपी रही एक हंसी

उसकी उदास बातें याद रही हमेशा

वो जानती थी

बातों को बचाकर ले जाना अपनी तरह से

इसलिए जब वो गयी

तब मैं भूल गया वे बातें

जो अक्सर रहती थी याद.

**

उसने कहा

आओ चाय पीते हैं

मैंने पूछा शराब क्यों नहीं?

उसने कहा

शराब मैं अकेले में पीती हूँ

मैंने कहा

मेरा मन नहीं चाय पीने का

उसने कहा ठीक है  

पहले चाय पीते हैं फिर शराब

फिर हमने न चाय पी न शराब

बस करते रहे बातें

चाय और शराब की.  

**

प्यार एकदिन समाप्त हो ही जाता है

मैंने कहा उससे एकदिन

हो ही जाना आखिर, उसने हंसते हुए जवाब दिया

मैंने पूछा क्यों?

स्थिर चीजें सड़ जाती है एकदिन  

प्यार भी अपवाद नहीं, उसने कहा

क्या हम रच सकते हैं कोई अपवाद, मैंने कहा

उसने कहा

नहीं. हम देख सकते हैं

प्यार को बदलते हुए

बिना किसी अफ़सोस के

बशर्तें तुम देख पाओ इसमें भी एक अनोखा प्यार.

 

© डॉ. अजित

 

 

 

 

Tuesday, November 30, 2021

नींद

 सुबह जल्दी जग गई

स्त्रियों के हिस्से आता है

कुछ अलग किस्म का काम


वे बुहारती है आंगन

करती है गर्म बचा हुआ दूध

देखती हैं रसोई को एक मापक दृष्टि से


लगभग नींद के खुमार में

करती जाती है सब कुछ व्यवस्थित


वे बोलती हैं बेहद कम 

शायद ही गुनगुनाती है कोई गीत 


वे जुत जाती है काम में

बिना किसी देरी के


सुबह जल्दी उठ गई स्त्रियां 

जगाती है अपने साथ उस लोक को 

जिसकी केवल स्त्रियां नागरिक हैं


सोते हुए लोग नहीं देख पाते

उनकी ये निजी दुनिया 

वे जब जगते हैं 

मिलता है सब कुछ व्यवस्थित


एक व्यवस्था के पीछे 

स्त्रियों की अधूरी नींद खड़ी होती है

इसलिए स्त्री चाहती है 

नींद में हर किस्म की व्यवस्था से मुक्ति


यदि किसी स्त्री से पूछा जाए

तो निःसंदेह वह ईश्वर से पहले 

चुनेंगी एक बेफिक्र नींद


ये अलग बात है कि

ईश्वर नींद में अनसुना कर देगा 

उनकी यह चाह


और अधूरी नींद में स्त्री करती रहेगी

ईश्वर का स्मरण, 

जीवन की तमाम असुविधाओं को

बांधकर शुभता का कलेवा 

मांगती रहेगी सबकी कुशलता की मन्नत

भूलकर अपनी नींद का वास्तविक अधिकार


व्यवस्था का यह क्रूर पक्ष है

जिससे नहीं होती है किसी की नींद खराब।


©डॉ. अजित

Tuesday, September 28, 2021

प्रेमिका को याद करते हुए

 प्रेमिका को याद करते हुए

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प्रेमिका को याद करते हुए
याद आ जाते स्वत:
छूटे हुए बसंत

जानकार लोग कहते हैं
प्रेमिका कभी पूर्व नहीं होती
प्रेम नकार देता है व्याकरण के नियम
मगर
प्रेमिका को याद करते हुए
अक्सर याद आ जाता है
पूर्व से पूर्व का समय

जब किसी के होने भर से
हम दिन को मान लेते शुभ
और टाल देते थे
अपने जीवन की तमाम अशुभता

प्रेमिका को याद करते हुए
सबसे ज्यादा याद आती है
अपनी वे गलतियां
जो होती गयी अनायास

यादों के सहारे
बनता है एक पुल
मगर वो रास्तों को नहीं जोड़ता
उसे देखा जा सकता है
दो देशों के मध्य फैली सीमा रेखा की तरह

प्रेमिका को याद करते हुए
याद आती है वो नदी
जो दरअसल तैर कर करनी थी पार
मगर हम तलाशते रहें
एक मल्लाह जो ले जा सके उस पर

प्रेम की स्मृतियाँ उतनी धूमिल नहीं होती कभी
प्रेमिका के नाम के अक्षर को हम पहचान लेते हैं
सबसे खराब लिखावट में भी

प्रेम यही कौशल देकर जाता है हमें
जो आता है काम हर बुरे वक्त में.

© डॉ. अजित


Monday, September 13, 2021

अपमान

 अपमानों की स्मृतियों को

कागज के जहाज की तरह

फूंक मार उड़ाया मैंने कई बार

हालांकि ये जतन बहुत कारगर तो न था

अपमान की स्मृतियाँ लोटकर आती रही मुझ तक

हर बार

 

ऐसी स्मृतियों को नाव बना

चलाया मैंने बेमौसमी बारिश में कुछ बार

मगर उनकी सतह इस कदर खुरदरी थी

कि उसको डूबते देखना

एक नये किस्म का दुःख था मेरे लिए

 

कभी हँसी, तो कभी रंज,तो कभी मलाल की शक्ल में

मैं अपमान की स्मृतियों को खुद से दूर रखने का

प्रयास करता रहा अक्सर

 

मगर

अपमान की स्मृतियों को

मुझसे बना रहा एक खास किस्म का लगाव

 

वे आती रही हमेशा याद

कभी रात में तो कभी दोपहर में

 

ऐसा भी नहीं है कि

मुझे अक्सर अपमानित होना पड़ा हो

बल्कि मैं बहुधा रहा स्वीकृत

मगर बारहा मुझे अपमानित होना पड़ा अकारण

यह एक विडम्बना जरुर कही जा सकती है.

 

अपमान की स्मृतियों की एक ख़ास बात थी

वे मुझे याद आती थी

सबसे सुखद दिनों में

वे देती थी दस्तक

उन्मुक्त हँसी के ठीक बाद

अपमान की स्मृति तलाश लेती मुझे

जब मैं माफ करने को होता किसी को

 

हालांकि मैंने बावजूद इनके माफ करना बंद नहीं किया

और इस बात के लिए

अपमान की स्मृतियों ने कभी माफ नहीं किया मुझे.

 

उन्हें लगा कैसा ढीट आदमी है ये भी  

अपमान के लिए समय को देता है दोष

और व्यक्तियों को करता है माफ़.  

 

इस बात के लिए समय ने लड़ी मुझसे

अलग किस्म की लड़ाई

 

अपमान की स्मृतियों पर कविता लिखने का

कर रहा हूँ यह एक नया जतन

शायद मिल जाए इस बहाने

सब अपमानजनक स्मृतियों को मोक्ष.

 

©  डॉ. अजित

 

 

Wednesday, July 21, 2021

बातें

 

उसने मेरा हाथ देखकर कहा था

ये एक मर्डरर का हाथ है

क्या तुम कभी कत्ल कर सकते हो किसी का?

मैंने कहा, शायद हां !

मुझे नहीं लगता तुम्हारे अंदर इतना साहस है, उसने कहा  

साहस कई बार क्षणिक रूप से घटित हो जाता है, मैंने कहा

मैंने नहीं चाहती वह क्षण कभी आए, उसने कहा

तो क्या एक कायर व्यक्ति प्रिय रहेगा तुम्हें?

हाँ !मैं पराजित की बजाए कायर को पसंद करती हूँ.

उसने ये कहा और मेरा हाथ पलट कर छोड़ दिया.

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क्या हम एक दूसरे की गंध पहचानते हैं?

उसने पूछा एक दिन

मैंने कहा,  गंध हमें पहचानती हैं

हम गंध को नहीं

उसने मेरी पलके सूंघते हुए कहा

तुम्हारी इस बात से सहमति है मेरी.

**

तुम्हें ईश्वर के दंड का भय नहीं लगता

उसने पूछा

ईश्वर के दंड का भय उन्हें लगता है

जिनके अंदर छल छिपा होता है

मैंने जवाब दिया

तुम्हारे अंदर क्या छिपा है? उसने पूछा

मैंने कहा

एक भरोसा इस बात का

कि तुम रहते छल की जरूरत नहीं पड़ेगी मुझे.

**

मैंने कहा एकदिन

सही-गलत उचित-अनुचित की

सबकी अपनी परिभाषाएं होती हैं

उसने मेरे कथन को लगभग अनसुना करते हुए

विषयांतर करते हुए कहा

कुछ चीजों की परिभाषाएं और वजहें नहीं होती

बस वे क्या तो होती है

या नहीं होती हैं

जैसे कि तुम.

© डॉ. अजित

 

 

 

 

 

Monday, June 7, 2021

मूर्खताएं

 मेरी मूर्खताओं का 

कोई अन्त नहीं था


वे इतनी सुव्यवस्थित थी

कि उन्हें देख 

सन्देह होने लगता था

अपने अनुभव और ज्ञान पर


मूर्खताओं को

पहचाने के लिए 

एक काम करना होता था बस मुझे


नियमित मूर्खताएं करना।


©डॉ. अजित


Saturday, February 6, 2021

कवि दोस्त

 उन्होंने सदा मुझे माना

एक प्रतिभाशाली कवि 


वे पेश आते रहे

बेहद विनम्रता से


खुद उत्कृष्ट कवि/पाठक होने के बावजूद

हमेशा संकोच के साथ बताते 

अपनी कविता के बारे में


बल्कि बताते भी नहीं थे

मैं खुद मांगता उनकी कोई कविता 

तो वे बदले में अपनी कविता भूल 

जिक्र करने लगती मेरी किसी पुरानी कविता का


जब-जब कहता मैं

कि अब कवि नहीं रहा हूँ मैं 

तो वे केवल फैला देते एक 

इमोजी वाली मुस्कान


उन्हें इस कदर भरोसा था 

मेरे कवित्त्व पर कि 

मेरे द्वारा प्रंशसित कविता को पढ़कर

वे याद दिला देते मेरी ही कोई कविता

ताकि मैं खुद का मूल्य कमतर न मानू 


उन्हें लगता था खराब

मुझे शब्दहीन और भाव निर्धन देखकर

मगर कभी कहते नहीं थे ये बात


वे प्रार्थनारत थे 

वे उम्मीदजदां थे

कि एकदिन मैं लौट आऊंगा 

अपने फ्लेवर,कलेवर और तेवर में 


उन्हें देख मुझे 

कोई कविता न सूझती थी 

निरुपाय होकर 

बस मैं देखता था उनके हाथ


जिन्हें थामे हुए 

मैं लांघ रहा था 

एकांत का वो गहरा निर्वासन 

जहाँ कविता 

अपना रास्ता भूल गई थी।


©डॉ. अजित