Saturday, July 29, 2017

अस्पताल की कविताएँ- 2

अस्पताल की कविताएँ- 2
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नित्य और अनित्य के मध्य
डॉक्टर का संतुलित मत
कभी भरोसा जगाता था
तो कभी डराता था
उन दिनों मैं हो गया था बेहद कन्फ्यूज्ड
किसे माना जाए भगवान
कभी डॉक्टर लगा था भगवान
तो कभी भगवान लगता था एक डॉक्टर.
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कभी कभी जूनियर डॉक्टर
सीनियर डॉक्टर से तुम्हारी बीमारी के बारें में
करते थे  सवाल-जवाब
उस वक्त रूम बन जाता क्लास रूम
तुम्हें ‘सब्जेक्ट’ बनता देख लगता था बेहद खराब
तब डॉक्टर से नही करता था कोई सवाल
बस देखता था तुम्हारी तरफ
उस वक़्त तुम ही थी
जिसके पास था मेरे हर सवाल का जवाब.
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डॉक्टर के लिए
तुम एक बीमार देह थी
यह उनकी पेशेवर प्रशिक्षण का हिस्सा था
फिर भी
मैंने कई बार डॉक्टर को देखा
थोड़ा निजी तौर पर  चिंतित होते हुए
जब तुम ठीक हो गई
डॉक्टर ने अपनी खुशी छिपाई हमसें
तब जान पाया मैं
एक डॉक्टर की परिपक्वता.
***
नर्सिंग स्टेशन का स्टाफ
मेरी अधीरता के कारण
मुझे करता था
थोड़ा नापसंद
महज़ तुम्हारे कारण
वो मुस्कुराते हुए आता था पेश
मैंने डिस्चार्ज के वक्त
जब उनको कहा धन्यवाद
उन्होंने कहा ‘ख्याल रखना’
तुम्हारे प्यारा होने का यह सबसे बड़ा सबूत था
मेर लिए.
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कुछ दवाओं के नाम
मुझे याद रहा गए है
मैं उन्हें भूलना चाहता हूँ
जब कोई करता है
बीमारी की बात
मेरे याददाश्त हो जाती है ताज़ा
फिर जानबूझकर
बीमारी की बात पर
सुना देता हूँ मैं अपनी एक कविता
दवा को भूलने की
यही एक दवा है मेरे पास.

© डॉ. अजित 

Friday, July 28, 2017

अस्पताल की कविताएँ

अस्पताल की कविताएँ
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तुम्हारे दाएं हाथ में कैनूला लगा है
मैं उसकी लम्बी सुईं को देखता हूँ
जिस जगह कैनूला लगा है
आसपास नसें दुबक गई है इसके दबाव से
तमाम तकलीफ के बावजूद
तुम्हारा हाथ खूबसूरत लग रहा है
दर्द में ख़ूबसूरती तलाशना मेरी आदत नही वैसे
यह कैनूला तुम्हारे हाथ पर टंका है
किसी पहाड़ी फूल सा
मैंने जब तुम्हारा हाथ अपने हाथ में लिया
इसने किया कुछ इस तरह से ऐतराज़
जैसे इसे मुझसे ज्याद फ़िक्र हो तुम्हारी.
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वातानुकूलित कक्ष
दीवार पर टंगा एलसीडी
और एक साफ सुथरा कमरा है
फिर भी मैं पलटता रहता हूँ रिपोर्ट्स
उकता कर बंद कर देता हूँ टीवी
तुम्हारी आँख लगी है अभी
सोते हुए देखकर लगता नही तुम बीमार हो
तुम बीमार हो ये सोचकर
नींद नही आती मुझे.
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मेडिकल की भाषा में यह फ्लूड है
गाँव की भाषा में मैं इसे ग्लूकोज़ कहता हूँ
टप-टप ये बहता है आसमान से जमीन की और
और इन दोनों के बीच तुम लेटी हो
बीच-बीच में यह डरा देता है
जैसे कि बंद हो गया हो इस प्रवाह
मैं चाहता हूँ ये बोतल आखिरी हो
मेरे चाहने से कुछ नही होता
यदि कुछ होता तो तुम यहाँ क्यों होती भला
ग्लूकोज़ को मैं कहता हूँ धन्यवाद
तुम्हारी तरफ से
फ्लूड नही देता कोई जवाब.
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हर घण्टे बाद
तुम्हारा तापमान नापना है मुझे
ये काम वैसे नर्स का था
मगर मैंने उत्साह से नर्स को मना कर दिया 
हर आधें घण्टे में
तुम्हारे माथे पर हाथ फेरता हूँ मैं
ताकि कम हो सके आने वाले गणना
ये कोई दवा नही है
ये दुआ भी नही है
ये बस मेरा अन्धविश्वासी मन है
जिसे नर्स से ज्यादा खुद पर भरोसा है.
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बीमारी में
जब आधी गाल से तुम मुस्कुराती हो
अच्छी लगती हो
मेरी हर लम्बी आह पर
ये मुस्कान बरबस निकलती है
इस तरह हम दोनों
विदा करते है
अपने भारी भरकम दुःख को.

© डॉ. अजित


Thursday, July 27, 2017

ख्वाहिश

तुम्हारी आँखों के काजल को देखता हूँ
तो लगता है कि
रात भर तन्हा जले दिए से
हथेली पर स्याही निकाल कर
समन्दर की चारदीवारी कर दी गई हो जैसे 
नीले पानी में ये स्याह रंग इस कदर चमकता है कि
समंदर चाह कर भी कभी
अपनी हदों से बाहर नही निकेल सकेगा
झूठ नही कहूंगा विष कन्याओं की तरह
तुम्हारा माथा थोड़ा तिलिस्मी है
मेरी तर्जनी पर कुछ उच्चाटन मन्त्र छपे है
मैं उन्हें तुम्हारे माथे के हवाले करता हूँ
इसके बाद कोई मुझे सिद्ध न माने
मुझे कोई तकलीफ नही होगी
तुम्हारे दो कानों पर अलग अलग
टापूओं के नक्शे दर्ज़ है
मैं दोनों का मिलान करना चाहता हूँ
दोनों की शक्लें बेहद मिलती है
मगर दोनों एकदम जुदा है
तुम्हारी नाक पर हरसिंगार का
एक फूल अटका हुआ है
वो तुम्हारे गुस्से से दोस्ती करना चाहता है
मगर तुम खुद से खफा हो ये जानकर
वो अपने मंसब से भटक गया है

तुम्हारे शुष्क लबों पर
ना कोई तमन्ना है और ना कोई शिकायत ही है
ये देखकर मेरा दिल थोड़ा बैठ जाता है
तुम्हें अपलक देखतें हुए
मैं अब तक का अपना प्यार पर दिया हुआ
सबसे बेवकूफी भरा बयान याद करता हूँ
ताकि तुम उसे सुन खिलखिलाकर हंस सको
और आदतन मुझसे कहो
‘तुम्हें अभी और बड़ा होना है’
© डॉ. अजित

Tuesday, July 25, 2017

क्रिया

हंसना एक क्रिया है
और रोना एक संज्ञा
मुस्कुराना फिर क्या है?
उसने पूछा
इस सवाल पर मैं
मुस्कुरा कर रह गया
उसने इस क्रिया को
मेरे व्यक्तित्व का विशेषण समझा।
***
नींद एक अवस्था है
और सपनें एक कल्पना
यथार्थ फिर क्या है?
उसने पूछा
मैनें उसके हाथ अपने हाथ मे लिए
और धीमे से कहा भरोसा।
***
मिलना एक सन्योग है
और बिछड़ना शाश्वत
अनुराग फिर क्या है?
उसने पूछा
मिलने और बिछड़ने के मध्यांतर पर टिका
एक पूर्णविराम
मैंने जवाब दिया
उसके पास दूसरा सवाल था
मगर उसने पूछा नही
मुझे यह रिश्तें का आदर लगा।
***
भूलना एक व्यव्यस्था है
और याद करना एक मजबूरी
याद आना फिर क्या है?
उसने पूछा
मैंने कहा
याद आना एक चेतावनी है
पूरी तरह किसी को भूलना
पूरी तरह किसी को याद रखना
तुम्हारे बस का नही।

© डॉ. अजित

Sunday, July 16, 2017

काजल

काजल स्त्री का
वो अंतिम और पहला मित्र है
जो सुख और दुःख में
सदा देता है एक समान साथ

काजल लगाने के लिए
कभी मन का खिला होना जरूरी होता है
तो कभी जी का बुझा होना

काजल मुस्कान का सहपाठी है
जो अक्सर कम नम्बर लाता है
रोजाना की भगदौड़ के बीच

रोज़ जीवन की परीक्षाओं में
काजल के भरोसे पास होती है
असंख्य स्त्रियां

काजल एक किस्म का भरोसा है
जो जानता है स्त्री मन के
तमाम गोपनीय द्वंद,उल्लास और सन्देह

काजल की छाया में सुस्ताती है
लोक की अपेक्षाओं से लड़ती स्त्रियां
ये उनके एकांत का है
सबसे विश्वसनीय साथी

अनिच्छा से लगाया गया काजल
नही पकड़ पाता प्रायः कोई पुरुष
स्त्री इसलिए काजल को रखती है
अपने नजदीक
मगर
बेहद लापरवाही के साथ।

©डॉ. अजित

Tuesday, July 11, 2017

सन्यास

मुझे तुमसे
अपना यह रहस्य नही कहना था कि
मुझे कभी प्यार नही हुआ
मैं पारदर्शिता के वेग में
कह गया बहुत कुछ ऐसा भी
जो न कहा जाता तो बेहतर होता

हद दर्जे की ईमानदारी एक सनक है
और इसी सनक में
मैं कर देता हूँ हर पास आती चीज़ को
खुद से बहुत दूर

मुझे बचाकर रखना था इतना रहस्य
जो हमेशा तुम्हें लगता रहता
थोड़ा अबूझ
जिस दिन से तुम्हारे लिए
प्रिडिक्टेबल हुआ मैं
उस दिन से मेरी बातों में बसने लगी थी
एक बरसाती नमी

मुझे किसी से कभी प्यार नही हुआ
इस कथन में न कोई रोमांच है
और न कोई सम्प्रेषण की गुणवत्ता ही है
बल्कि ये बात बनाती है
प्यार का नाम भी लेने का अनाधिकारी

अब जब तुम पर प्रकट हो गया मेरा रहस्य
तुम देख रही हो मुझे
दुनिया के सबसे निर्धन
मगर चालाक आदमी की तरह
मेरी व्यंजनाएँ सब लगने लगी है
झूठी और कृत्रिम

मेरी तमाम कविताएँ
भोजन की तरह सूंघकर
तुमनें घोषित कर दी है बासी और खराब

इन सबके मध्य
मैं खुद को बचा रहा हूँ
मुझे कभी प्यार नही हुआ
इसके अनुलोम-विलोम से

यदि मैं बच सका तो
करूँगा प्रवचन एकदिन
मनुष्य के जीवन मे रहस्य की महत्ता पर
मुझे कभी प्यार नही हुआ
इस कथन को कीर्तन में बदलनें के लिए
लेना पड़ेगा मुझे
कई-कई जन्मों तक सन्यास

ये अलग बात है
तुम्हारी नजर में होगा वह भी
एक कोरा ढोंग
जन्म-जन्मान्तर तक।

©डॉ. अजित

Sunday, July 9, 2017

लाभ

मेरी देह की त्वचा
इतनी संवेदनहीन हो गई है कि
एक नन्ही चींटी
इसे धरती समझ दौड़ रही है
बेपरवाह

मैं उसकी दौड़ में कोई बाधा नही चाहता
इसलिए लम्बवत पड़ा हूँ बहुत देर से
मैं नही चाहता कि मेरे कोई हरकत
उसे उसकी गलती का अहसास कराए

धरती से कुछ फीट ऊपर
चींटी का उत्साह देखते ही बनता है
वो मेरे पैर के अंगूठे पर उगे बालों को
जंगल समझ खेल रही भूलभुलैय्या

त्वचा सम्वेदनहीन होकर
पेश आती है धरती की तरह
और धरती सम्वेदनहीन होकर बन जाती
एक उखड़ी हुई त्वचा
एक आंख से चींटी
और एक आंख से धरती देखने पर
इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ मैं

जो चींटी मेरी देह को
धरती समझ घूम रही है
वो दरअसल व्यस्क नही

मैं इसलिए आश्वस्त हूँ
मुझे डंक का भय नही
इसलिए उदार हूँ

मेरी आश्वस्ति को
उदारता या प्रेम नही समझा जाए
त्वचा का सम्वेदनहीन होना
मुझे देर रहा है
कौतूहल देखने का आत्मविश्वास

मैं वयस्क हूँ
और चींटी नही है
दोनों ले रहे है अपने अपने लाभ

सम्वेदना का हीन हो जाना
हम दोनों को सीखा रहा है
अपने अपने हिस्से का लाभ लेना।

©डॉ. अजित

Monday, July 3, 2017

सलाह

वो कहती दुनिया की बातों को
दिल पर न लिया करो
दुनिया का काम है कहना
सबकी सुनोगे तो
जीना मुश्किल हो जाएगा
वो मेरा जीना आसान करना चाहती थी
मगर नही तलाश पाई एक मुकम्मल तरीका
फिर यूं हुआ
एकदिन वो खो गई भीड़ में

मैं उसकी बातें एक जगह संकलित कर रहा हूँ इनदिनों
उन बातों में सलाह है नसीहत है
और जगह-जगह दुबका हुआ प्यार है
उसकी चिंताओं की मैंने एक जिल्द बनाई है
जिसके अंदर उसकी सलाह रखी है

हालांकि उसकी एक सलाह नही मानी मैंने
मगर
उसकी सलाहों का एक गहरा मूल्य है मेरे जीवन में
जब किसी को सलाह देता हूँ मैं
एक वरक उसकी किताब का पढ़ लेता हूँ
और लूट लेता हूँ  श्रेय
एक बढ़िया सलाहकार होने का

कभी-कभी सोचता हूँ
अगर उसकी सलाह मान लेता मैं
तो क्या आज बढ़िया सलाहकार होता मैं?
शायद नही

अब, जब वो नही है
और मैं कर रहा हूँ सालाह का कारोबार
वो हंसती होगी मेरी चालाकी पर
जो उसके रहते नही सीख पाया मैं.


© डॉ.अजित 

आत्महत्या

आत्महत्या वह भी कर सकता है
जो बेहद जीवट हो
जीवन वह भी जीए जा सकता है
जो बेहद निराश हो

आत्महत्या करने की एक वजह होती है
और जीवन जीने की अनेक

जीवट आदमी की आत्महत्या
जीवन पर भरोसा कम करती है
निराश व्यक्ति की आत्महत्या
जीवन को क्रूर कहती है
और व्यक्ति को कायर

आत्महत्या एक अंतिम सुविधा है
जिसे चुनता है मनुष्य
असुविधाओं की ऊब के बीच

हर आत्महत्या की खबर
एक आत्मकथा है
अतीत जिसका पूर्व पाठ है।

©डॉ. अजित