Tuesday, July 11, 2017

सन्यास

मुझे तुमसे
अपना यह रहस्य नही कहना था कि
मुझे कभी प्यार नही हुआ
मैं पारदर्शिता के वेग में
कह गया बहुत कुछ ऐसा भी
जो न कहा जाता तो बेहतर होता

हद दर्जे की ईमानदारी एक सनक है
और इसी सनक में
मैं कर देता हूँ हर पास आती चीज़ को
खुद से बहुत दूर

मुझे बचाकर रखना था इतना रहस्य
जो हमेशा तुम्हें लगता रहता
थोड़ा अबूझ
जिस दिन से तुम्हारे लिए
प्रिडिक्टेबल हुआ मैं
उस दिन से मेरी बातों में बसने लगी थी
एक बरसाती नमी

मुझे किसी से कभी प्यार नही हुआ
इस कथन में न कोई रोमांच है
और न कोई सम्प्रेषण की गुणवत्ता ही है
बल्कि ये बात बनाती है
प्यार का नाम भी लेने का अनाधिकारी

अब जब तुम पर प्रकट हो गया मेरा रहस्य
तुम देख रही हो मुझे
दुनिया के सबसे निर्धन
मगर चालाक आदमी की तरह
मेरी व्यंजनाएँ सब लगने लगी है
झूठी और कृत्रिम

मेरी तमाम कविताएँ
भोजन की तरह सूंघकर
तुमनें घोषित कर दी है बासी और खराब

इन सबके मध्य
मैं खुद को बचा रहा हूँ
मुझे कभी प्यार नही हुआ
इसके अनुलोम-विलोम से

यदि मैं बच सका तो
करूँगा प्रवचन एकदिन
मनुष्य के जीवन मे रहस्य की महत्ता पर
मुझे कभी प्यार नही हुआ
इस कथन को कीर्तन में बदलनें के लिए
लेना पड़ेगा मुझे
कई-कई जन्मों तक सन्यास

ये अलग बात है
तुम्हारी नजर में होगा वह भी
एक कोरा ढोंग
जन्म-जन्मान्तर तक।

©डॉ. अजित

1 comment:

सुशील कुमार जोशी said...

हमेशा की तरह सुन्दर ।