Tuesday, March 10, 2015

उधार

एक अदद
फोन तक सिमट आई है मेरी दुनिया
मैं बाहर से सुखी हूँ
अंदर से दुखी
या इसके विपरीत हूँ
ना मेरा फोन जानता है
ना फोन के जरिए जुड़े लोग
इसलिए इस माध्यम से जुड़े लोग
जानते है
मेरे बारें में आधा सच
या फिर आधा झूठ
मेरे बारें में जानना
कोई ब्रह्म ज्ञान भी नही है
जिसके जाने बिना मोक्ष न मिलें
किसी को जानने के जरिए
समझना इतना आसान भी नही है
जितना आसान समझ लिया जाता है
साल भर पहले
लैपटॉप के जरिए सबसे जुड़ा था
आज वो मेरे जीवन की सबसे उपेक्षित चीज़ है
कल शायद फोन भी
दबा पड़ा रहे किसी तकिए के नीचे
और मैं देखता रहूँ शून्य में
माध्यम का सबसे अधिक
दुरूपयोग का दोषी हूँ मैं
और मतलबी तो इतना कि
निर्जीव चीजों के सहारे लूटता हूँ
प्रेम और सहानुभूति
ताकि सिद्ध कर सकूं
खुद को एक संघर्षरत योद्धा
अवसाद और एकांत के सहारे
ऊकडू बैठ खोदता हूँ
सबसे घने पेड़ की जड़
जिसकी छाया मुझे बचाती रही है
अराजक और कुंठित होने से
दोस्तों को मेरी इस हरकत पर
कोई ऐतराज नही
उन्हें लगता है कर रहा हूँ
कुछ गुणवत्तापरक काम
कविता या भावुक नोट
लिख कर नींद आती है मुझे
जी हां ! एक उधार की नींद।

© डॉ. अजीत


No comments: