Thursday, June 8, 2017

सुख है

मुद्दत से मैं इस कदर खाली हूँ
जिससे एक बार बातें 
करना करता हूँ शुरू
फिर भूल जाता हूँ समय का बोध
उसकी रूचि के केंद्र
मैं उघड़ता जाता हूँ 
किसी पुराने टाट की तरह

मेरे पास निजी दुःखों के 
इतने रोचक आख्यान है कि
श्रोता उनमें तलाश लेता है
अपने दुःखों के लिए सांत्वना
यह मेरे दुःखों की सबसे बड़ी
भावनात्मक उत्पादकता है 

दुःखों के आख्यान रोचक है 
मगर असल मे दुःख है बहुत बोरिंग
वो मुद्दत से मेरी शक्ल देखकर 
ऊब के शिकार है
उनकी ऊब आप पूछ सकते है
मेरे छिट-पुट सुखों से

मैं इस कदर खाली हूँ कि 
बातचीत में भूल जाता हूँ 
छोटी छोटी बात
मगर मुझे ठीक से याद 
अपने जीवन के सारे अपमान

मैं जब सुना रहा होता हूँ अपने दुःख
मुझे लगता है दुःख निरपेक्ष होकर
सुने जाते है
दुःख को सुनने वाला जानता है
दुःख का आदर करना
कई बार सही साबित होता हूँ
कई बार होता हूँ गलत साबित

मुद्दत से यह मेरी दबी कामना रही है 
कि मैं अपने दुःखों को कुछ तरह से 
करूँ प्रस्तुत 
कि मेरा पीड़ित होना हो जाए
सम्प्रेषित 

मैंने खालीपन के दौरान ही जाना
यह ब्रह्म सत्य
दुःखों को सुनने के बाद
आप सिद्ध होते है बेहद मामूली
जबकि
सुखों को सुनकर मिलती है प्रेरणा
इसलिए दुःख नही आते 
आपके किसी काम 
पर्याप्त संख्या के बाद भी 

लड़ता गिरता सम्भलता व्यक्ति
बहुत देर तक नही बांध पाता 
अपनत्व की तिरपाल 
उखड़ जाते है उसके पैर 
एक छोटे से अनौपचारिक मजाक से

जिनसे मैनें कहे अपने अनकहे दुःख
वे कान चिपक गए दिमाग से
वे आंखें प्रार्थनारत हो गई नींद के लिए
वे मनुष्य जुट गए तैयारी में
उनके हृदय पर भारी पड़ गई 
अपने दुःखों को लांघने की जल्दबाज़ी

मुद्दत तक दुःखों पर बात करने के बाद
अब मुझे कोई दुःख नही है
दुःख वास्तव में होने चाहिए 
बेहद निजी
दुःख से उपजी आत्मीयता
इतनी चलताऊ चीज़ है
इधर आप सुना रहे हो 
अपने जीवन का
सबसे त्रासद किस्सा
उधर कोई कहे
क्या बात है !

मैनें दुःखों की बातें बंद कर दी अब
हालांकि खाली उतना ही हूँ अभी भी
फोन पर जब कोई पूछता है हालचाल
तब अनिल यादव की तरह कहता हूँ
सुख है !

©डॉ. अजित 




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