Saturday, January 5, 2019

इतवार

वैसे तो याद नही रही
कभी दिनों की मोहताज़
मगर इतवार के दिन
जो कसक के साथ आती है याद
उसकी आह बनी रहती है
हफ्ते भर

इतवार यादों को छांटने का दिन नही
इस दिन यादें खुद हो जाती है
अलग-थलग
फिर सबसे पहले जो आती है याद
बनी रहती है वो देर रात तक

वैसे तो यह दिन छुट्टी का है
मगर यादों के हिस्से नही होती
एक भी छुट्टी
जैसे ही भूलने को होते है किसी को
इतवार आ जाता है

फिर दिन भर
यादों के भरोसे
अच्छी बुरी बातों को सोचतें
किस्सों को मन की आंच पर सेंकते
बीत जाता है इतवार

रात को सोने से पहले
कहता है मन एक बार
यूं होता तो क्या होता
इसके बाद
सपनों की दुनिया से बैरंग
लौट जाती है इतवार की यादें

क्योंकि
सपनों में उन यादों का नही मिलता
कोई जिक्र
सपनों में आते है जो
वो सुबह होते-होते नही रहते याद

इसलिए
हमेशा बची रह जाती है
इतवार की यादें।

© डॉ. अजित