Friday, April 29, 2022

बात

 उन दोनों के मध्य

अचानक से खत्म हो गयी थी बात

जैसे खत्म हो जाती है

देहात को जाती छोटी सड़क


जैसे खत्म हो जाती है

किसी बच्चे की कच्ची पेंसिल

जैसे खत्म हो जाती है

रसोई की बची अंतिम रोटी 

भूख से ठीक पहले


जब अचानक से खत्म हुई बात

तो बचा रहा एक निर्वात से भरा शून्य


जहां खो जाती थी ध्वनि

जहां इनकार कर देते थे शब्द आकार लेने से


उन्होंने टटोली अपनी अपनी स्मृतियां

नहीं बचा था वहां एक ऐसा शब्दकोश


जो दे सकता किसी ज्ञात शब्द को

नया अर्थ 

और शुरू पाती कोई पुरानी बात

एक नए अर्थ के साथ।


©डॉ. अजित 

6 comments:

Onkar said...

बहुत ही सुंदर

Sweta sinha said...

जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार १० मई २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

गहन भाव लिए अच्छी रचना ।

मन की वीणा said...

वाह! बहुत खूब! गूढ़ भावों का मंथन

Anupama Tripathi said...

वाह बेहतरीन रचना

सुशील कुमार जोशी said...

सुन्दर सृजन