Thursday, November 4, 2010

हकीकत

बात सोचने पर कडवी लगी

सुनकर जिसे खुश हुआ था

किस्सा हमारा था अपना

तमाशा दुनिया को लगा था

एक फूंक मे उड गया वजूद

लकीर का फकीर जो बना था

बेफिक्री उनकी काबिल-ए-तारीफ

फिक्रमंद तो महफिल की तौहीन हुआ था

अहसास ज़ज्बात के साथ दफन हुए

जख्म लेकिन अन्दर से हरा था

वो जब भी मिला बेबस ही मिला

ऐतबार तो इम्तिहान की हद था...।
डा.अजीत

2 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सुन्दर ..भावों को बखूबी लिखा है ..

संजय भास्‍कर said...

बहुत सुंदर भावों को सरल भाषा में कहा गया है. अच्छी रचना