Tuesday, April 29, 2014

जीवन

मात्र हृदय स्पन्दित होना
जीवित होने का प्रमाण नही
यह शरीर की स्वाभाविक प्रक्रिया है
मन का रक्त के घूमने की प्रक्रिया पर
आंशिक प्रभाव पड़ता है
ऐसा चिकित्सकों के एक समूह ने
बताया है
जीवन पाइथागोरस की प्रमेय नही
जहां सब कुछ समीकरण सिद्ध सा हो
जीवन अनंत सम्भावनाओं
संक्षिप्त विकल्पों
अनियंत्रित संकल्पों
बदलते प्रकल्पों
की धूरी पर चढ़ा एक चाक है
जहां सृजन इतना कच्चा है
कि उसे अनुभव भी नही पका पाते
दरअसल,पकना और कुछ नही
निष्ठुर होने का अभ्यास है
जिसे श्रेष्ठ मनुष्य की
परिपक्वता समझ लिया जाता है।

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