Friday, August 8, 2014

एफ बी दर्शन

फेसबुक को मतलबी चश्में से देखने पर
यह सच के ज्यादा करीब दिखती है
सम्बन्धों को साधने का गणित
आंतरिक रिक्तताओं का मनोविज्ञान
खुद से भागने का दर्शन
जुड़ने का काव्य
बिछड़ने का गद्य
जाति वर्ण धर्म का समाजशास्त्र
खुद को प्रोजेक्ट करने की यांत्रिकी
आत्म मुग्धता का कुशल प्रबन्धन
मानव व्यवहार की जटिल गतिकी
इन सब का अध्ययन
फेसबुक पर किया जा सकता है
लिखे जा सकते है शोध पत्र
इसकी विषय वस्तु के इतने उप विषय है
कि कुछ नए विषय प्रकाशित किए जा सकते है
चेहरे इतने गूथे हुए है आपस में कि
भावुक और व्यवहारिक
चालाक और भोला
चिंतक और प्रचारक
क्रांतिकारी और सुविधावादी में
भेद करना बेहद मुश्किल काम है
यहाँ पर लोग क्या तो चालाक नियोजन युक्त
समीकरणों से बंधे है
या फिर खुद की तलाश में भटक रहें है
एक वर्ग महज़ होने के लिए यहाँ है
उसकी दिलचस्पी
न ज्ञान में है
न शिल्प में
न सम्वेदना में
उसके अपने एजेंडे है यहाँ होने के
कुल मिलाकर यह एक दिलचस्प अड्डा है
जहां रोज कोई न कोई
आप चौका देता है
हंसा देता है या फिर रुला भी देता है
तकनीकी के इस दौर में
फेसबुक एक ऐसा आभासी रंगमंच है
जहां रोज नए नए पाठ मिलते है
हम ढोतें है अपने अपने किरदार
मोबाइल स्क्रीन और कंप्यूटर इस दौर की
आधुनिक नाट्यशालाएं है
जिसमें चल रहे होते है
असंख्य नाटक हर रोज़
फेसबुक के मालिक को भी अंदाजा नही होगा कि
एक उप महाद्वीप के लोग
जिनका दावा आध्यात्म में विश्व गुरु होने का रहा है
इतने अस्त व्यस्त त्रस्त होंगे
कि हाथों हाथ लेंगे इस आभासी विचार को
और सौप देंगे इसे
अपना एकांत
सपना और निजता
खुशी के सेंसेक्स में शामिल हो जाएगी फेसबुक
जिसकी कीमत
कभी अवसाद की इक्विटी तय करेगी
तो कभी सहमति की कमोडिटी
बड़े संदर्भो में  देखा जाए तो
यह एक अच्छा प्रयोग है
मनुष्य की अभीप्साओं को
परखने का इसलिए कुछ विरक्त लोग भी
फेसबुक पर चिमटा और मंजीरा बजा रहें है
उनके लिए यह जगह
किसी दरगाह से कम नही
यह सब फेसबुक के बारें में
अनुमान है
ठीक ठीक बता पाना
सम्भव नही किसी के लिए भी
यही इस माध्यम की
सबसे बड़ी ख़ूबसूरती है
यह और इस पर जुड़े लोग
जितने ज्ञात है वो उतने ही
अज्ञात भी है।


© अजीत

( गद्य-पद्य से परे एक निठल्ला नोट)

1 comment:

कविता रावत said...

बहुत सही कितने ज्ञात होकर भी अज्ञात है फेसबुक के दुनिया में। …
गंभीर विश्लेषण व चिंतनयुक्त रचना