Sunday, November 29, 2015

सजा

अचानक से छूट गए हाथ
स्पर्शों को याद करते है मुद्दत तक
कोई वजह नही तलाश पातें
अपनत्व की नमी में आई कमी की
सम्बन्धों की जलवायु को दोष भी नही दे पातें
विदा से अलविदा की यात्रा को देखते हुए
वो शुष्क हो जाते है
उनकी गति का दोलन बदल जाता है
वो ओढ़ लेते है एक अजनबीपन
अनायास जब दिल पर रखें जातें है ऐसे हाथ
वो देते है हमारे खिलाफ गवाही
बतातें है हमारी एकतरफा ज्यादती
जिसकी बिनाह पर दिल सुनाता है सजा
यादों की उम्रकैद में
रहो ताउम्र आधे-अधूरे।

©डॉ. अजित

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