Wednesday, December 13, 2023

ठीक हूँ

 मैं ठीक हूँ

यह मात्र एक वाक्य नहीं है

बल्कि 

ठीक बने रहने की 

समस्त तैयारियों का 

एक विशेषण है

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ठीक हूँ एक शिष्टाचार की आश्वस्ति है

ताकि सहजता में प्रश्नचिन्ह न लगे 

और प्रवाह बचा रहे पूछने वाले के जीवन में।

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ठीक हूँ को कहने के कुछ अन्य तरीके हो सकते हैं

मगर तरीके तलाशना 

ठीक न होने की विज्ञप्ति बनने का जोखिम रखती है

इसलिए भी कहा जाता है

ठीक हूँ।

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उसने कहा 

ठीक हूँ 

यह मेरे सवाल का जवाब नहीं था

सवाल इसलिए निस्पृह बचे रहे

क्योंकि जवाब कम ईमानदार  थे।

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ठीक हूँ और ठीक नहीं हूँ

एक ही शब्द की 

दो व्याख्याएं हैं

जिसके पढ़ने के लिए 

जरूरत नहीं पड़ती

किसी व्याकरण की।

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ठीक हूँ के पहले ठीक नहीं था

ठीक हूँ के बाद भी ठीक नहीं था

जहां ठीक हूँ था

वहाँ कोई न था

मैं भी नहीं।

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ठीक हूँ कहने से पहले 

शंका न थी

ठीक हूँ कहने के बाद दुविधा थी

वो पूछ न ले कहीं

कि कितना ठीक हूँ।

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ठीक हूँ में हूँ था। मगर ठीक अनुपस्थित था

वो निकल पड़ता था एक अनुवादक की खोज में

जो कर सके जीवन के समस्त नकार का अनुवाद उस भाषा में

जिसकी लिपि अभी बनी नहीं है।

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ठीक हूँ कहता था जब कोई 

तो ठीक हो जाता था कोई 

दो शब्द उस किस्म की औषधि थी

जिसे समझ लिया गया था

विज्ञान की भाषा में प्लेसिबो।

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ठीक हूँ वाक्य नहीं एक मुहावरा था

जिसके लिए नहीं बना था ठीक ठीक

वाक्य में प्रयोग।


© डॉ. अजित 


5 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

वाह

Sudha Devrani said...

वाह!!!
कमाल का विश्लेषण... ठीक हूँ...कितने ही तरह से कहा जाता है...
बहुत सटीक।

Alaknanda Singh said...

मानस‍िक व‍िश्लेषण करती एक भावभरी कव‍िता ...वाह

Onkar said...

बहुत सुंदर

सुषमा said...

सुंदर...