Friday, September 26, 2014

उसकी दुनिया

उसकी दुनिया: जो मेरी दुनिया थी कभी
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उसकी दुनिया का
एक छोटा सा हिस्सा था मै
हिस्सा था भी या नही
यह मेरे आकार जितना
संदिग्ध था हमेशा।
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उसकी दुनिया
भूगोल की नही
अर्थशास्त्र की दुनिया थी
जहां मै
इतिहास सा विवादित था।
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उसकी दुनिया
खुशी का मांग पत्र थी
और मै
उदासी का चक्रवृद्धि ब्याज़।
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उसकी दुनिया
सपनों की आढ़त थी
जहां रोज तुलती थी
अपेक्षाओं की फसल
छमाही की उधार।
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उसकी दुनिया में
बैचेनियों के रतजगे थे
करवटों के जंगल थे
वो नदी थी
बिना पत्थरों की।
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उसकी दुनिया
उसकी परिभाषाओं पर
टिकी थी
जिसमें सम्पादन की
गुंजाईश कम थी
वो बिना शर्त उल्टी घूमती थी
अपनी धुरी पर।
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उसकी दुनिया
सपने दिखाती थी
जिनका टूटना तय होता
फिर सपने देखने की लत लगती
उसकी दुनिया में।
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उसकी दुनिया
मेरी दुनिया से अलग थी
मेरी दुनिया इनकार करती
उससे मिलने से
उसकी दुनिया आवाज़ देती जब
खुद को रोक न पाता मै।
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उसकी दुनिया में
एक चीज सम्मानीय थी
प्रेम
प्रेम के प्रपंचों से उसे घृणा थी
अव्यक्त प्रेम करना
उसी से सीखा मैंने।
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उसकी दुनिया
समय की सत्ता को अस्वीकार करती
भाग्य का उपहास करती
काल गणना को उलट देती
वहां जीवन का मतलब
जीना था
गणना नही।

© डॉ. अजीत