Saturday, September 20, 2014

गजल

अपने वजूद में सिमटने लगा हूँ मै
कई कई हिस्सों में बंटने लगा हूँ मै

तुम मेरी फ़िक्र न किया करो दोस्त
फिर से वादों से मुकरने लगा हूँ मै

हिज्र के सफर पर जाने वाला हूँ
यादों से तेरी लिपटने लगा हूँ मै

हकीकत इतनी कड़वी क्यों है
डर कर सच निगलने लगा हूँ मै

तबीयत नासाज़ है जिगर खराब
संग तेरे पीने को मचलनें लगा हूँ मै
© डॉ. अजीत

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