Monday, February 6, 2017

कमजोरी

मैंने कहा मेरी अंग्रेजी कमजोर है
ये बात मैंने कमजोरी से ज्यादा
ताकत के तौर पर इस्तेमाल की अक्सर
अंग्रेजी पढ़ते वक्त हिंदी में सोचता
तो गड़बड़ा जाते सारे टेन्स
इज एम आर वाज़ वर लगते मुझे दोस्त
उनके साथ आई एन जी जोड़
छुड़ा लेता था अक्सर अपना पिंड
यह मेरी अधिकतम अनुवाद क्षमता थी

एक्टिव वॉयस और पेसिव वॉयस का भेद
मुझे आजतक नही समझ पाया
मै क्रिया कर्ता कर्म तीनों को समझता रहा
मुद्दत तक एक ही कुनबे का

भाषा को लेकर हमेशा रहे मेरे देहाती संकोच
मैंने साइन बोर्ड पढ़कर याद रखे रास्ते
इस लिहाज से अंग्रेजी काम आई मेरी
कुलीन जगह पर अंग्रेजी बोलने के दबाव के बावजूद
मैंने हिंदी को चुना
चुना क्या दरअसल मैंने चुप रहने का नाटक किया
क्या तो प्राइस टैग पलटता रहा
या मेन्यू देखता रहा बिना किसी रूचि के
ऐसे मौकों पर दोस्तों ने बचाई जान
उनके सहारे मेरा सीना तना रहा
ये अलग बात है कभी वेटर तो कभी सेल्स पर्सन
भांप गया ऑड और एवन में मुझे बड़ी आसानी से

ये बातें मैं अतीत का हिस्सा बताकर नही परोस सकता
ना ही अपने किसी जूनून का विज्ञापन कर सकता
मै जीता रहा भाषाई अपमान के मध्य
अपनी स्वघोषित अनिच्छा का एक बड़ा साम्राज्य
मैंने लूटे अक्सर भदेस होने के लुत्फ़

यहां जितनी बातें की उनकी ध्वनि ऐसी रखी
जानबूझकर कि लगे सीख गया हूँ
ठीक ठाक अंग्रेजी अब
मगर सच तो ये है
आज भी मुझसे कोई पूछे
जूतों के फीते की स्पेलिंग
मै टाल जाऊँगा उसकी बात हंसते हुए

कुछ और भले ही न सीखा हो मैंने
मगर मैंने सीख लिया है
अज्ञानता को अरुचि के तौर पर विज्ञापित करना
अंग्रेजी की तो छोड़िए
इस बात के लिए मुझे हिंदी ने
माफ़ नही किया आज तक

मेरी वर्तनी में तमाम अशुद्धियां
हिंदी की उसी नाराज़गी का प्रमाण है
जिनसे बचता हुआ आजकल
मैं खिसियाते हुए ढूंढ रहा हूँ
एक बढ़िया प्रूफ रीडर
जो कम से कम मेरा दोस्त न हो।

©डॉ.अजित

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